बाल मनो विज्ञानं | Bal Mano Vighian

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Bal Mano Vighian by लालजी राम शुक्ल - Lalji Ram Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) को अब बालक की दृष्टि से नहीं देखते, बल्कि प्रोढ़ दृष्टि से देखते है । हम , उनके जीवन की छोटी छोटी बातों का महत्व नहीं जानते । इन्हीं छोटी बातों में बालक के बड्प्पन की जड़ है | जानकारी को इच्छा .का दमन--एक नन्हा बच्चा सदा किसी न किसी चीज को पकड़ने की कोशिश किया करता है। हम उसके हाथ से अनेक चीजें छुड़ाया करते हैं। बालक एक नई चीज को जब देखता है तब उसकी ओर दौडता है, उसे पकड़ने की कोशिश करता है; जब वह हाथ . में आ जाती : है तब उसे मसलता है, जमीन पर उसे पटकता है और फिर उठाता है। यदि वह तोड़ने योग्य चस्तु हुईं तो उसे तोड़ डालता है। उसे इसमें प्रसन्नता होती है। हम बच्चे को यह सब करने से प्रायः रोका करते हे, ˆ पर यह्‌ हमारी कितनी भूल ই, इसे बाल-मनोवेत्ता भली भोति जानते है । बालक का . बाह्य जगत का ज्ञान उसकी अनेक प्रकार की क्रियाओं से ही बढ़ता है। संवेदना तथा स्पर्शज्ञान की भित्ति के ऊपर ओर सक प्रकार का मनुष्य का ज्ञान स्थित है। ओर स्पशेज्ञान हमारी अनेक प्रकार की शारीरिक क्रियाओं पर निभर है। जो बालक जितना ॐ . चंचल होता है वह संसार के बारे में उतना ही अधिक ज्ञान आप्त करता है। .. दमन का दष्परिणाम--जब हम किसी बालक की -चंचलता को डाँट-डपटकर रोक देते हैं तब उसके मन में हर '. एक नई वस्तु के प्रति एक प्रकार का अज्ञात भय हो जाता है। उसकी स्वाभाविक क्रियात्मक वृत्तियों का अवरोध - होने, लगता है। वह जब बड़ा होता है तब हरएक काम करने में दिचकिचाने . क्षणता है। उसके मन में एक प्रकारः की अ्रंथि पेंदा ही जाती




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