राक्षस का मन्दिर | Rakshas Ka Mandir
श्रेणी : नाटक/ Drama, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.51 MB
कुल पष्ठ :
157
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री लक्ष्मीनारायण मिश्र -Shri Lakshminarayan Mishr
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प् राशस का मा दर नल न रघुनाध--यहद वेश्या छाप को धोखे में डाल रही है । छारगरी--वेश्या ? माँ--बाप भाई बहन दीन और इमान--- सब छोड़ कर यहाँ छाई इसी इनाम के लिये ? यही मरी इज्जत है ? रामलान से हुजूर याद है कितनी मुद्दे बत-- कितना सुलावा देकर आप मुभे यहा ले आये थे ? रघुनाथ--तुम यहाँ थाई क्यों ? अश्गरी--कहूँ हुजूर । रामकाल की थार देखती हे | रामलाज --निकल जावा शेतान | इस घर से तरा कोई साता नहीं । रघुनाथ--बस अब मैं खुशी से यह घर छोड़ दूँगा । ठीक है यह वेश्या रहे... लड़का रह कर क्या करेगा-- रघुनाथ का प्रस्थान था रामलाल-- श्रश्गरी छाती से लगा कर रज मत हो । जब तक शरीर में प्राण है तुम्द छोड़ नहीं सकता । मुद्द अत और मुलावा ? उसमें सदेद 1 करना । दस हजार रुपये महीने की चकालत-पुग्हारे लिये है। जा तुम्हारे सुख का काटा बनगा उसे फूक दूं... चाहे कोई हो । झरगरी दोनों बाहँ रामलाज के गले में डाल कर सिसक सिसक कर रोने जगती है १
User Reviews
No Reviews | Add Yours...