राक्षस का मन्दिर | Rakshas Ka Mandir

Rakash Ka Mandir by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्‌ राशस का मा दर नल न रघुनाध--यहद वेश्या छाप को धोखे में डाल रही है । छारगरी--वेश्या ? माँ--बाप भाई बहन दीन और इमान--- सब छोड़ कर यहाँ छाई इसी इनाम के लिये ? यही मरी इज्जत है ? रामलान से हुजूर याद है कितनी मुद्दे बत-- कितना सुलावा देकर आप मुभे यहा ले आये थे ? रघुनाथ--तुम यहाँ थाई क्यों ? अश्गरी--कहूँ हुजूर । रामकाल की थार देखती हे | रामलाज --निकल जावा शेतान | इस घर से तरा कोई साता नहीं । रघुनाथ--बस अब मैं खुशी से यह घर छोड़ दूँगा । ठीक है यह वेश्या रहे... लड़का रह कर क्या करेगा-- रघुनाथ का प्रस्थान था रामलाल-- श्रश्गरी छाती से लगा कर रज मत हो । जब तक शरीर में प्राण है तुम्द छोड़ नहीं सकता । मुद्द अत और मुलावा ? उसमें सदेद 1 करना । दस हजार रुपये महीने की चकालत-पुग्हारे लिये है। जा तुम्हारे सुख का काटा बनगा उसे फूक दूं... चाहे कोई हो । झरगरी दोनों बाहँ रामलाज के गले में डाल कर सिसक सिसक कर रोने जगती है १




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