अष्टाध्यायी में वर्णित आदेश विधायक सूत्र एक समीक्षात्मक अध्ययन | Ashtadhyayi Men Varnit Ades Vidhayak Sutra Ek Samikshatmak Adhyayan

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Ashtadhyayi Men Varnit Ades Vidhayak Sutra Ek Samikshatmak Adhyayan by श्रीमती मधु - Shrimatee Madhu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अतिदेश सूत्र - अन्यतुल्यजविधानम्‌ अतिदेशः अतिदेश सूत्र 'वत्‌” घटित अथवा इसके अर्थ से घटित-॥ होता है। यह जो नहीं है उसे मानकर कार्य करने की आज्ञा देता है। जैसे- स्थानिवनादेशो उनल्विधौ | | सूत्र यह आज्ञा देता है कि स्थानी को आदेश के समान मानों किन्तु अल्विधि में नहीं। इससे अस्‌ के स्थान में भू आदेश होने पर भू को स्थानी के समान धातु मानकर धातुप्रयुक्त लुड़ लकार, में च्लि विकरण || इत्यादि हो सके तथा अभूत शब्द सिद्ध हो सका। : महर्षि पाणिनी ने अपने ग्रन्थ अष्टाध्यायी मे ट्रि, धु, ध, नदी, सर्वनाम, सार्वधातुक आदि अनेक संज्ञाओं का प्रयोग किया गया है। लेकिन एक संज्ञा ऐसी है कि जिसका विवरण अष्टाध्यायी में न | करने पर सम्पूर्ण अष्टाध्यायी की कल्पना भी नही कर सकते । उस संज्ञा का नाम ठे इत्‌-संज्ना । इत्सन्ना | मै वर्णित छै: सूत्रो दवारा इत्संज्ञा का विस्मत विवरण उदाहरण के रूप में इस अध्याय मेँ प्रस्तु है । जिनके | || उपयोग से सफलता पूर्वक अभीष्ट सिद्धि हो जाती हे। | अष्टाध्यायी मेँ इत्संज्ञा का कोई लक्षण नहीं दिया गया है । अपितु इत्संज्ञक वर्णो का परिगणन || | ही कर दिया गया है। परिगणक सूत्र छः हैं- || 1. उपदेशे ऽजनुनासिक इत्‌ 1.3.2 2. हलन्त्यम्‌ 1.3.3 3. आदिञिट्‌ऽ्वः 1.3. 4. षः प्रत्ययस्य 1.3.6 2. चुटू 1.3.7 | 6. लशक्वताद्धते 1.3.8 | इत्संला का फल है लोप, तस्य लोपः 143 /9 अर्थात्‌ व्यवहार दशा में उस इत्संज्नक का ॥ दृष्टिगोचर न होना (अदर्शन लोप: 1/1/60) अदृश्य रहकर भी वे स्वसम्बद्ध शब्द को अनेक प्रकार से || ||| नियन्त्रित करते है । उदाहरण के लिए स्तुत्यः पद की सिद्धि मे कू तथा प्‌ कौ इत्सज्ञा ओर लोप हो जाता हे। परन्तु प्रत्यय के कित्‌ होने से ही गुण नहीं होता विडतिच 115 तथा पितू होने से तुक्‌ का आगम हो जाता है । हृस्वस्य पिति किति तुक्‌ (64171) फलतः स्तुत्यः पद सिद्ध होता है । इस प्रकार ऐसे वर्ण | || जो प्रयोग दशा मेँ दिखलायी नहीं पडते फिर भी जिनके उपयोग से सफलता पूर्वक अभीष्ट सिद्धि हो जाती || [ह]




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