भारतीय काव्यशास्त्र की रूपरेखा | Bharatiy Kavyashastr Ki Ruparekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
193
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय काब्यशास्त्र का सम्प्रदायमूलक इतिहास / 7
आचाये भोज “रीति” के लिए कवि पंथ का नाम देते है---
बेदर्भादि कृत: पन््था: काव्ये मांगें इति स्मृतः।
रीड्ताविति धातोसा व्युत्पत्यारीतिस्च्यते ॥
इस “रीति शब्द का प्रयोग आचार्य वामन हारा विया गया किन्तु बृत्ति
मामं एवं पन््य के रूप से इसका उत्लेख आचार्य भरत से ही मिलने लगता है।
सामान्य तथा “रीति एिद्धान्त” के मूल उद्भावक के रूप সিজার নাল জা
एक मात्र उल्लेख क्रिया जाता ই किन्तु इस सिद्धान्त की चर्चा उनके पुव॑वर्ती
आचार्यों से भामह, दण्डी तथा परवर्ती आचार्यो मे रूद्रट, कुन्तक, भोज, शिह-
भूपाल आदि भी करते है । सत्य है कि आचायें वासन जैंसी रीति निरूपण की
निष्ठा किसी अभ्य परवर्ती आघायं मे नही दिखाई पड़ती ।
हिन्दी साहित्य में “रीति” शब्द का प्रयोग रीतिकालीन कवियों द्वारा
किया मया और यह् शब्द काव्य प्रणाली, काव्यरचना, मुक्तक काव्य आदि अर्थो
में प्रयुक्त मिलता है। आधुनिक हिन्दी साहित्य मे मिश्र बत्धुओ ने “रीति” शब्द
का प्रथोग काव्यप्रणाली के अर्थ में किया है तथा आचाये शुक्ल काव्यरचता में
निहित प्रवृत्ति और उसकी पुतरावृत्ति परम्परा के रूप मे इस शब्द का प्रयोग
करते हैं ।
सामयिक नव्य समालोचना के अन्तर्गत शैली विज्ञान या “रीति জিসান”
की एक नई आलोच ना विधा विग्रत तीन-चार दशको से प्रारम्भ हुई है | यह दृष्टि-
कोण आचार्य वामन के रीति विषयक दृष्टिकोण से कई अर्थों मे तालमेल रखता है
किन्तु चिन्तन की स्थापनाओ एवं मौलिकताओ की दृष्टि से यह आलोचवा की
सर्वेथा नवीन विधा है।
गुण सम्प्रदाय :--- गण क्या पृथक से एक काव्य सिद्धान्त है, इस
विषय मे पर्याप्त मतभेद है किन्तु रचना के स्तर पर भाषिक मादवे एव उसके
भौतिक स्वरूप रचना के कारण काव्य-बैशिष्ट्य के प्रभावों का आकलन अनिवायँता
के छप में किया जाता है रीतिवादी आचार्य वासन जब रीति का विवेचन करते
है तो उनके विवेचन का प्रमुख दृष्टिकोण गुणाश्चित ही है। प्राय आचाये भरत से
लेकेर पण्डिततराज जगन्नाथ तक वे काव्यरचना के उस भाषिक নথিতে का समर्थन
करते है, जिसके कारण एक काव्य रचना के रूप में रूपायित होता है ।
सामात्य रूप से व्यावहारिक स्तर पर काव्य भाषा के इस गुण वैशिष्ट्य
का उल्लेख महाभारत, राभायण, कौटिलीय अर्थशास्त्र एवं पाणिनि कृत अष्टाध्यायी
आदि जघ प्राचीन ग्रन्थों मे प्राप्त है, फिर भी आचार्य भरत के नाट्यशास्त्र मे
इसका उल्लेख सर्वथा प्राचीन तथा प्रामाणिक माना जाता है। आचार्य भरत ते
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