शिक्षा - शास्त्र | Shiksha - Shastra

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Shiksha - Shastra by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शिक्षा के उहदे হয १४ मानी जाने लगी, तय ब्राह्मण का पुत्र श्रपने को ब्राह्मण के पेशे के लिए तय्यार करता था, च्त्रिय का पुरे क्षत्रिय के, और वैश्य का पुत्र वैश्य के पेशे के लिये पढ़ाई लिखाई करता था। भारतीय इतिद्वास में आह्मण काल के बाद नद्ध काल श्राया ) उस समय चारो तरफ मिक्त दी मिक्त दिखाई देने लगे, ओर प्रत्येक माता पिता का ध्येय शपते वालक को मिद्‌ वना देना हो गया। (उस समय भरत मे रिक्ता ने भिक्त सधो के लिये बालऋों को तय्यार करना श्रपना लद्य॒ थना ज्या । जय श्रशोक के समय भारत का पज धमं ही वद्ध घमं हो गया तव भिन्न मिन्‍न राजकीय पदों के लिये घौद्ध होना आवश्यक समम्ध जाने लगा, और शिक्षकों ने उध राजकीय पदों फे लिये बालऊ को बोद्ध धर्म की शित्ता देकर तय्यार करना अपना लक्ष्य बना लिया । मुसलमामा के भारत में थाने पर भी घामिक भावता को जगाना ही शिका फा उदेश्य ममर जाता रहा । सक्तो का सम्बन्ध मरिजिदों से रद्द, ओर बुरान पढ़ा देना दी मौलबियों का एकमात्र लद्देय रहा। थे यही समभते रहे ऊि कुरान पढ़ लिया तो शिक्षा पूरी हो गई, कुरान न पढ़ा तो षु नहीं पढा। ६ भारत की सामाजिक रचना में, भर यहा की राज व्यवस्था में जब सके परम को प्रधानता रही तय, तक प्रधानता री _तव्‌ तरु ध्म की. शिता देना ही शितां का उदस्य यना र । न्य देशों फा इतिहास भी यदी वत लग বাজ मे जिस भा समाज में जिस (भाव के प्रबल होती है और एल. 1 ~ জু হট को घलाने गले लोग यालका मे जो भावना भरना स দি शिक्षा फा पही उद्द श्य £ । इसझा एक छन्दा साः ওহি मीस की नी न मीस भ सपाय नाम्‌ की एक रियासत थी । छस समय हरेक देश अपने को असुरक्षित समग्ना या] शतु किसी भी समय आक्रमण कर सता था| शत्रु




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