श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 87 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 87
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
200
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १३ )
यष्ट मन्य उभरित होता रहता था। चैतन्य বিবাদী আহি বল
समय के ग्रन्थ ऐसे ही उचारण क्रते-फरते लिसे हैँ । किस समय
थे पढ़ा रहे थे, उस समय मैं भी उनके यहाँ चैंटवर सुन रद्दा घा।
उन्शेनि तुरन्त कलटा--““तुम्टारे बोलने से हमप्रे पठानेमे पन्न
होता ट, या तो घोलना यन्द परो स् चलते उरो 1 सै खटकर
चला श्चाया।
इसी प्रकार एफ दिन पू० उंडिया यायाजी मी गये और “सका
भी वहत फ्टवारा। सन््यासी होकर कीर्तन कराते हो, आषदि-जादि
झोर कह विया-यहाँ से चल जाओ । थे प्रणाम करके হী
आये । प ब्रह्मचारीजी महारज वाधा के पास गये घौर लमा
याचना फी । श्री ब्रह्मचारीजी यड व्यवहार पटु थे । वे श्रपने व्य-
वष्टार से सर्भी को प्रसन्न रने कौ चेष्टा करते ये । उनके समीप
गरीय, श्नमीर, पठित, मूख, सनातनी, श्रायंसमाजी, योगी भोगी
सभी प्रकार फे लोग आते थे, और सभी से उन्हीं के अनुरूप
चात किया करते थे ।
देश मे भारतीयता का प्रचार हो, फिर से धर्म की स्थापना हो,
चदिक आये सस्क्ृति का प्रसार हो।शाह्मणों मे फिर से पोटश-
सस्कार होने लगे। उनकी बडी प्रडी योजनारयें होती थीं। एफ
चार मुभसे भी धहुत-सी पाते हुई। उनको आशा थी-/यह उत्साही
हं, नवयुवक हूं, यह जिस काम में जुट जाथगा तो काम ही
जायगा ।” मभुससे कहा--“यों आद्य्ों का सगठन करो। एक
सम्मेलन करो | सबको सध्या का गायनी का उपदेश दिया जाय ।
सब घच्चे कम से कम सन्ध्या-गायजी करें ।? उन्होंने वडा यडी
योलनप्मं चनायी में उसके लिये खुरला आएदि गया भी किन्तु
खुरजे से प० नारायणदत्तजी बदय मे मेरा उत्साह सिथिल्ल कर
दिया। उन्होंने फद्दा--ब्रद्मचारीजी तो बहुत बड़े शादखंठादी £ की
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