श्री भागवत दर्शन भागवती कथा भाग - 87 | Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 87

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Shri Bhagawat Darshan Bhagavati Katha Bhag - 87  by श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी - Shri Prabhudutt Brahmachari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) यष्ट मन्य उभरित होता रहता था। चैतन्य বিবাদী আহি বল समय के ग्रन्थ ऐसे ही उचारण क्रते-फरते लिसे हैँ । किस समय थे पढ़ा रहे थे, उस समय मैं भी उनके यहाँ चैंटवर सुन रद्दा घा। उन्शेनि तुरन्त कलटा--““तुम्टारे बोलने से हमप्रे पठानेमे पन्न होता ट, या तो घोलना यन्द परो स्‌ चलते उरो 1 सै खटकर चला श्चाया। इसी प्रकार एफ दिन पू० उंडिया यायाजी मी गये और “सका भी वहत फ्टवारा। सन्‍्यासी होकर कीर्तन कराते हो, आषदि-जादि झोर कह विया-यहाँ से चल जाओ । थे प्रणाम करके হী आये । प ब्रह्मचारीजी महारज वाधा के पास गये घौर लमा याचना फी । श्री ब्रह्मचारीजी यड व्यवहार पटु थे । वे श्रपने व्य- वष्टार से सर्भी को प्रसन्न रने कौ चेष्टा करते ये । उनके समीप गरीय, श्नमीर, पठित, मूख, सनातनी, श्रायंसमाजी, योगी भोगी सभी प्रकार फे लोग आते थे, और सभी से उन्हीं के अनुरूप चात किया करते थे । देश मे भारतीयता का प्रचार हो, फिर से धर्म की स्थापना हो, चदिक आये सस्क्ृति का प्रसार हो।शाह्मणों मे फिर से पोटश- सस्कार होने लगे। उनकी बडी प्रडी योजनारयें होती थीं। एफ चार मुभसे भी धहुत-सी पाते हुई। उनको आशा थी-/यह उत्साही हं, नवयुवक हूं, यह जिस काम में जुट जाथगा तो काम ही जायगा ।” मभुससे कहा--“यों आद्य्ों का सगठन करो। एक सम्मेलन करो | सबको सध्या का गायनी का उपदेश दिया जाय । सब घच्चे कम से कम सन्ध्या-गायजी करें ।? उन्होंने वडा यडी योलनप्मं चनायी में उसके लिये खुरला आएदि गया भी किन्तु खुरजे से प० नारायणदत्तजी बदय मे मेरा उत्साह सिथिल्ल कर दिया। उन्होंने फद्दा--ब्रद्मचारीजी तो बहुत बड़े शादखंठादी £ की




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