संस्मरण | Sansmaran
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about बनारसी दास चतुर्वेदी - Banarasi Das Chaturvedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० संस्मरण
हैं । श्राप निश्चय जानिये कि इसमें मेरा एक माहा भी स्वाथ नहीं हं ।
मे तो यही चाहता हं कि भगवान्ने श्राप जेसी तबियतका एक कवि उत्पन्न
किया है, तो उसकी कविताका कुछ विकास भी हो, यों ही न कुम्हिला
जावे । यदि आप कुछ लिख जावेंगे, तो दो सो वर्ष बाद शायद श्रापके
नामकी पूज्ञा तक हो सकती है ।
एक भारतमित्र के नातेसे श्रापसे पत्र-व्यवहार चलता हें। यह
नाता श्राप तोड़ते हे, भगवान् जाने श्रबकी टूटी फिर कब जुड़े । कोई श्राठ
साल बाद आपसे फिर पत्र-व्यवहार चला था, श्रब बन्द होकर न जाने
कब खले ! मं नह जानता, कि श्रब श्राप पत्र-व्यवहार करेगे या नहीं ।
इससे कछ विनय करता हू ।
(१) हर बातमें शंकित और उदास मत हुआ कीजिए ।
(२) कोई कुछ श्रालोचना करे, तो उसकी परवाह मत
कीजिए ।
(३) श्रालोचकोंकी फूल बातोके उत्तरकी ज्वरूरत नहीं हं ।
(४) चित्तको हर मामलेमें प्रसन्न रखिए--बात-बातमे नाराज्ञी
भ्रौर चिद् भली नहीं ।
(५) आपका काम सुन्दर कविता बनाना हे--छेड़-छाड़ का उत्तर
देना नहीं ।
(६) दासों और भित्रोपर विहवास रखना ।
(७) जब तक जीवन ह्, जीना पड़ेगा । सो प्रसन्नतासे जीना चाहिए ।
उदासी क्यों ? दास
बालमुकन्द गुप्त ।
द्विवेदीजीसे पाठकजीका पत्र-व्यवहार प्राय: श्रंग्रेज़ीमें हुआ करता
था । शिमलासे ३०।८।०३ को लिखी हुई पाठकजीकी एक चिट्ठीका
कू अ्रंश सून लीजिए--
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