मुट्ठी भर फूल | Mutthi Bhar Phool
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
125
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হন मुट्ठी भर फूल
यह तुम मुझसे कह रहै हो सन्तु क्या ख्वाव मे भी तुम्हे ऐसा `
विचार श्रा सकता है कि तुम्हे भूल जाऊंगा श्रे बदकिस्मती की,
कठोर दीवार भी मुझे तुमसे अलग न कर पायी सन्तु ।
“लेकिन अब डरता हूँ भया कि कही*“'यह दीलत को दीवार **
तुम्हे मुझसे अलग न कर दे।* श्रौर सन्त् उठकर बाहर चला गया *
आाँखो मे आये हुये आँसुओ को छिपाने के लिये ।***
दोनो तरफ प्राग जल रहीथी ` एक तरफ ट्रेन के इन्जन और
दूसरी ओर तीन मासूम दिलों मे**'अपनी आग को दबा सकने के कारण
ट्रंन का धुआ्आाँ गुब्बार बतकर बाहर निकल रहा था लेकिन **
दिल् ड. ॐ
मजबूर दिल
अपनी आग को दिल मे दबाये हुये वे तीनो इन्लजार कर रहे थे
ट्रंन छूटने का नही * अपने साथी के बिछड जाने का ट्रेन की चीखती
आवाज को सुनकर आँखे तीनो की मीलो दूर ले जाने वालें इ जन की
धरोर उठी और फिर एकाएक माया ने विनय की'ओर देखो “डबडेबाई.
জী |:
' भया'! तड़प उठा सन््लु: फ़िर से: एक़ बार सोच লী লী ই
हो पसेकी लासचन्मे चुम सन्तु पौर चन्दाको खो।बरंठो यह् मन्तू
कह रहा है भया ˆ वह् मंगले वहु कार नीले बल्बोकी तंस्ती हुई
रोशनी:/चाँदी की। फन््कार*' छलकती हुई गलियाँ/ 'बल, खाती
जवानिर्याˆ ˆ“ तुम्हे, जोश न दिला सकेगी उन रमीनियो मे तुम् कहानी
न लिख सकर, तुम्. १
सन्तु ` ' लीन्त,पञ विनय“ प्ख एक कार् अश मे आकर विन
ने'आँखें दूसरी 'झओर हटा! ली और इससे प्रहले की 'सन््त की आँखो से
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