मुट्ठी भर फूल | Mutthi Bhar Phool

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Mutthi Bhar Phool by शिरोष - Shirosh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হন मुट्ठी भर फूल यह तुम मुझसे कह रहै हो सन्तु क्या ख्वाव मे भी तुम्हे ऐसा ` विचार श्रा सकता है कि तुम्हे भूल जाऊंगा श्रे बदकिस्मती की, कठोर दीवार भी मुझे तुमसे अलग न कर पायी सन्तु । “लेकिन अब डरता हूँ भया कि कही*“'यह दीलत को दीवार ** तुम्हे मुझसे अलग न कर दे।* श्रौर सन्त्‌ उठकर बाहर चला गया * आाँखो मे आये हुये आँसुओ को छिपाने के लिये ।*** दोनो तरफ प्राग जल रहीथी ` एक तरफ ट्रेन के इन्जन और दूसरी ओर तीन मासूम दिलों मे**'अपनी आग को दबा सकने के कारण ट्रंन का धुआ्आाँ गुब्बार बतकर बाहर निकल रहा था लेकिन ** दिल्‌ ड. ॐ मजबूर दिल अपनी आग को दिल मे दबाये हुये वे तीनो इन्लजार कर रहे थे ट्रंन छूटने का नही * अपने साथी के बिछड जाने का ट्रेन की चीखती आवाज को सुनकर आँखे तीनो की मीलो दूर ले जाने वालें इ जन की धरोर उठी और फिर एकाएक माया ने विनय की'ओर देखो “डबडेबाई. জী |: ' भया'! तड़प उठा सन्‍्लु: फ़िर से: एक़ बार सोच লী লী ই हो पसेकी लासचन्मे चुम सन्तु पौर चन्दाको खो।बरंठो यह्‌ मन्तू कह रहा है भया ˆ वह्‌ मंगले वहु कार नीले बल्बोकी तंस्ती हुई रोशनी:/चाँदी की। फन्‍्कार*' छलकती हुई गलियाँ/ 'बल, खाती जवानिर्याˆ ˆ“ तुम्हे, जोश न दिला सकेगी उन रमीनियो मे तुम्‌ कहानी न लिख सकर, तुम्‌. १ सन्तु ` ' लीन्त,पञ विनय“ प्ख एक कार्‌ अश मे आकर विन ने'आँखें दूसरी 'झओर हटा! ली और इससे प्रहले की 'सन्‍्त की आँखो से




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