स्वाधीनता के पुजारी | Swadhinta Ke Pujari

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Swadhinta Ke Pujari by भूदेव विद्यालंकार - Bhudev Vidhyalankar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रेशा-मक्त केथेराहन ছু वर्ष तक होता रदा। सेनिकों के इस अत्याचार से चारों ओर हा-दा-कार भच गया। के थेराइन का विल इन हृद्यद्र[वक कथाओं की सुनकर অন্ন ज्ञित हो उठता था । जिस समय चंड अपने पिता के सामने, जो कि अपने यहां के पंख थे, से निकों और ज़मीदारों के अत्याचारों से पीड़ित, और डनकी मार से छँगड़े, छूले हुएए किसानों ओर विधवा ख्रियाँ को विलछाप करते और दुद्दाई देते देश्वती, तो उसका हृदय सौ सी टकड़े दोजाता । जिस समय थे लीग उससे पिता से कहते थे कि उस सर- कारी त्रसते को पक बार फिर ध्यान से पढ़िये, शायद उसमे कुछ भूछ रद गई हो, उसे सुधरवाने का प्रयत्न कीजिए । डस समय अपने पिता को निरुत्तर देख कर फेथेराइन के दिल पर बज खा गिर पड़ता था। उसे ज़ार- शाही पर इतना ऋध आता था कि कहा नहीं जा सकता! वह उसी क्षण उसके समूलोच्छेद्‌ के लिए व्यग्न दो उठती थो। पर, निरुपाय होकर दिल मसोसख कर रह जाती थी । प्रारम्भिक शिक्षा इसी बीच में कैथेराइन को अपनी माता तथा बहिन के साथ सेन्टपीटलंबर्ग जाने का अधचसर पड़ा। मार्ग में जिस गाड़ी पर केंथेराइन जा ग्ही थी, उस्ीमे एक उच्चपदस्थ राज- कर्मचारी कों युवराज भी कही जा रहा था। यह युवराज साइबेरिया से अपना सरकारी काम समाप्त कर छौट रहा था। जिस डब्बे में केथेराइन थी, सौमाग्य से वद भी डसमे जा बठा | थोढ़े दी समय के बाद सामयिक बातों पर दोनों का वार्ताल्राप होने छमा | कैथेराइन अभी तक एक नरमदलू फेसे विचार रखने चाकी स्ली थी। इन सब अत्याचारों का शक मात्र उपाय उसे सुघार (रिफॉर्म) हो दिखाई देता था|




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