अन्तिम किसलय | Antim Kislaya

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Antim Kislaya by गोपीकान्त पंडित - Gopikant Pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ६ ) हमारा पर्याप्त संपर्क रदा; पर विंध्या और अरावली के अंचल्ों की ओट में महाराष्ट्र के खांडे हर और फइके अबवा गुजेर प्रान्त के मुन्शी हम से महुत दिनों तक छिपे ही रहे । उपस्योस तो अनुवाद रूप में कुछ सामने आए मो, पर कहामियां नहीं । एक बात और भी । वंयाल ने प्रायः अत्येक बात में पश्चिम का अनुकरण ही अधिक किया है। कया साहित्य कया कल्ला सब में पश्चिम का जो संभिश्रण होगया है उसमें हमें शुद्ध आारतीयता का रूप नहीं मिल्लता। यह प्रश्न दूसरा दे कि उससे कला में कहाँ तक सुन्दरता आई दै कहाँ तक विरूपता। संगीत को हो कलीजिए। बंगाली संगीत में अंग्रेजी संग्रीत को खंमिश्रण होगया है। यही बात उसके सादिद के संबंध में भी कही जा सकती है। पर मद्दाराष्ट्र ने अभी तड क्या कल्ला क्‍या संगीत क्‍या साहित्य खबसें भारतीय संस्कृति का रूप अस्‍्लुष्ण रखा ¦ शुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत हवा जो रूप हमें मद्दाराष्ट्र के संगीत में प्राप्त है वह बंगाली संगीत में नहीं। बंगाली छाया- चित्रों में खेय का ज्ञो पाश्चात्‌ रूप खींदा जाता है डसकी प्रभात! कंपनी ले काफी खि्ठो उड़ाई थी । मराठी ऋद्वानियों में पाश्चात्य प्रभाव होते हुए सी भ/रतोय जीवन के चित्र अधिक सिते हं क्यों छ उनके अवन मे सारतीयता की मात्रा भी बंगालीयों की अपेक्षा अधिक दै। अतएवं कई दृष्टियों से हम मोलिकता के मास परअखस्ाद पानेवाली गंदी प्रेम कहानियों से भारतीयल्‍भावापन्न मराठी कहानियों के अनुवाद का विशेष




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