वैताल - पचीसी | Vaital - Pachisi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ ११ |
हुप्रा है। रूपा-तरकर्ता देईदान भाषा का कुशल भ्रधिकारी लेसक तथा पारसी
ज्ञात होता है। उसमे शब्द रूप, विभविंत तथा क्रियादि मे भाषा के হন,
फी रक्षा करते हुए उसको सरल, सरस, भाद्श एव श्राकपेंक रूप देने का प्रयत्न
किया है । इस विषय में कतिपय उदाहरण इस प्रकार हैं--
ष सस्कृतं तत्सम शव्द
भ्रस्थानपुर (पृ २). प्रतापमुकुट (पृ ६), समस्या (षृ ११) प्रीति (पृ
११), सर्वेमगला (पृ ३१), भ्रायुयल (पृ ३२), सयोग (पु ४६), सिद
गुटिका (षृ ६५), श्रौर प्रभात (प् १०७) ध्रादि।
ख सस्त तद्मद शब्द--
जोगो (स योगी,ष् ३), पापणी (स पापिनी, पृ &), विक्रमादित (स
विक्रमादित्य, पृ १५), तठे (स तच्र,पृ २३), एता (स एतद्, पृ २५)
परघान (स प्रधान, पु २९), उजेणी (स उज्जयनी, प् ३५), मारग (स
सार्ग, पृ ३७), श्रादि ।
ग देश्य श्व्द-
वते (पुन, षृ १), समला (सुनाश्रो, पु १), वाह (पीचेसे, पू ७),
उभो (खडो, पृ ६), तेडइ (बुलाते, पृ १३), दीकरो (पुत्र, पृ १७), हिंवइ
(प्रव, प् २०), वीदणोी (दुल्हिन पृ २०), दिहनगी (दानगो, दैनिक मजदूरी
वेतन, प् ३१), छानोई ज (चुपचाप हो, पृ ३३), मुकलावो (गोना, पृ ३६),
पडो (चलाप्रो, ष ४५), श्रर पोसू (दछन? पृ ४६), श्रादि।
ध प्ररवी-फारसी शभ्रादि शब्द--
निजर (नजर, पृ ६), पवर (खबर, प् «), दिलगीर (पृ १०), तकीये
(पृ १४), तसलीम (प् २४, २६), भ्रसवाब (पृ २४), बकसीयो (बरशीश
किया, प् २७), तमासौ (त्तमाशा, पृ २७), गुनह (प् २७), तोफान (पृ २८),
मुजसे (पृ २६), प्रर पिजमतत (खिदमत, पृ २६), श्रादि ॥ रूपान्तर मे प्रयुक्त
रहिसो' रही, श्रावसी' (पु ११), नीसरीसर (पु १५), भोगवीति (पृ २६),
ससे क्रियारूपो से स्पष्ट होता है कि मापा पर राजस्थानी कौ उत्तरो बोलो
का प्रभाव पडा है। झ्पान्तरकर्ता बीकानेरवासो था भ्रतएव यह स्वाभाविक
ही है। दोठठ, दीयइ, थारइ, किस्तउ, छद्द (पृ ३), भौर रइ, तोरइ, बइठो,
पछटद (प् ४) में 'उ' शोर 'इ! के प्रयोग भाषा पर प्राचीन शैलो का प्रभाव
बताते है। 'छे' (प् ३०, ७३, ६६) प्रयोग भी 'छट्ट! के स्थान पर मिलते हैं ।
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