न्याय कुमुद चन्द्र भाग - 1 | Nyay Kumud Chandra Bhag - 1

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Nyay Kumud Chandra Bhag - 1  by महेन्द्र कुमार न्याय शास्त्री - Mahendra Kumar Nyay Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सम्पादकीय-- ১৮৮1 भूमिका--इस भाग में अ्न्थ तथा भन्थकार अकलूझू और प्रभादन्द्र के सम्बन्ध में ज्ञातव्य अनेक ऐतिहासिक तथा दाशनिक सन्तव्यौं का तुलनात्मक विवेचन किया गया है। मन्थ विभाग में प्न्थ का तुलनात्मक परिचय तथा विशद्‌ विषय परिचय दिया गया है! अन्थकार विभाग झें অন্ধন্তক देव का इतिहास निबद्ध किया है ओर अकर्ड्क के साथ प्राय: ख्य मुख्य समी जेन तथां जेनेतर ग्रन्थकारों की तुूना करते हुए बहुत सी बातों का रदस्य उद्घाटित ছি ই। इड भाग को यदि जेनतक युगके इतिहास की रूपरेखा कही :.८ दा कोई अत्युक्ति न होगी। क्योकि अक्क देव को जेन न्याय के प्रस्थापक होने का श्रेय: प्राप्त हैं। यदि जैनदशन के कोषागार से उनके भन्थरत्नों को अलग कर दिया जाये या जेनन्‍्याय रूपी आकाश से इस जाज्वल्यमान नक्षत्र का अस्तित्व मिटा दिया जाए तो वे सूने और निश्चभ हो जायेंगे | अतः इस महापुरुष की जीवनगाथा ओर जेनन्याय के विकास की आत्मकथा दोनों परस्पर में सम्बद्ध हैं, एक के जीवन का अनुशोलन दूसरे पर प्रकाश डालने के लिये श्रदीप का काम देता है ! अत: इस भाग में प्रकृतग्रन्थोंकी तुलनात्मक विवेचना के साथ साथ अकलछु और प्रभाचन्द्र के समय और प्रन्थां की षिवेचना, अकर से पहर जेनन्याय की रूपरेखा, जेनन्याय को उनकी देन, आदि सभी आवश्यक बातों पर प्रकाश डाछा गया है । अकूलङ्क के समयनिणेय के प्रकाश में अन्य भी कई जनेतर प्रन्धकारों के प्रचङ्ति समय के वारे मे भी उहापोह किया गया है, इस लिये एेषिहासिकों के लिये भी यहं प्रस्तावना उपयोगी होगी । छपाई आदि- मू, विवृति, व्याख्यान, टिषण ओर पाठान्तर के लिये उपयुक्त टाप का उपयोग किया है । उद्धरणवाक्य इटाछिक मे दिये বাত ই जिससे उनके पहचानने मे भ्रम न हो । पाठान्तर और ठिप्पण में भेद्सूचन करने के लिये पाठान्तर को मोटे ओर शेष रिपण को पतले टाईप में दिया है। प्रत्येक पत्र पर पंक्तिसंख्या भी दी गई है जिससे अन्वेपकों को अनेक सहूलियतें रहंगी । प्रत्येक प्रष्ठ के ऊपर प्रवेश, परिच्छेद, कारिका की संख्या और विपय का निर्देश कर दिया है इससे किसो भी विषय को सरलता सरे खोजा जा सकेगा । लिखित प्रतियों में विरामचिह्नों का उपयोग मात्र (1? ऐसी खड़ी पाई का होता है। वह भी छेखक एक पत्र या पंक्ति में शोभा के छिए इतनी पाइयां छगानी चाहिए ऐसा सोचकर जहां मन में आता है वहां छगा देते हैं। हमने इसमें अल्पविराम, अधविराम, विराम, आश्चर्य- सूचक, अश्नसूचक आदि चिह्नों का उपयोग किया है । किसी खास वात को या पृवपक्ष के शब्दों कोः ! इस तरह सिंगल इनवर्टड कामा में रखा है। अवतरणों को *. डव इनवर्टेड कामा में रखा है । प्रकरणों का तथा अवान्तर चचाओं का वर्गीकरण करके उन्हें भिन्न मिन्न पैरोग्राफ में रखा है। जहाँ प्रकरण शुरू होता ই वहाँ बगल में हेडिंग इटालिक टाइप में दे दिया है । इस तरह पाठकों की सुविधा के छिए प्रायः समुचितप्रणादियों पर ध्यान रखके इसका मुद्रण कराया गया है। भन्थमें जो शब्द सभी ग्रतियों में अशुद्ध है तथा हमें उन शब्दों की जगह दूसरा पाठ प्रतीत हुआ उसे ( ) इस ब्रेकिट में दिया है। जिससे भ्न्‍्थ की मौलि- कता सुरक्षित रह सके। विशेष व्यक्तियों के नाम या बादों के नामों के नीचे ----- - ऐसी छाइन दे दी है। संक्षेप में यही इस संस्करण का सिंहावछोकन है । संशोधन में उपयुक्त प्रतियों का परिचय (৫) '“आ०! संज्ञक, इंडरमंडार की जोणशीणे कीटदृष्ट प्रति। इस प्रति में कुछ ४११ पत्र हैं। अन्तिम दो पत्र एक एक बाजू पर ही छिखे गए हैं। इसके श्रू ॐ ११ पत्र सदश रेखक छ द्वारा छिखी गई लघीयस्य की स्वनिवृति की प्रति से बद्ङ गण्‌ दै, अर्थात्‌ विदति




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