दुबे जी की चिट्ठियाँ | Dube Ji Ki Chitthiyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)खाली बेच्च पर बैठ कर पुनः वाचालाप होने लगा । वृद्ध
महाशय बोले--हुवे जी, सच-सच बताइएगा, क्या आपको
यह अच्छा मालूम होता है कि आपके सर जाने पर आपकी
खी दूसरे पुरुष के पाख चली जाय ९
मेंने कहा--एक दिन लह्या की महतारी ने भी मुझसे
यही प्रश्न किया था | इसका उत्तर मैते यही दिया था छि
नहीं । इस पर उसने कहा कि फिर हम ख्ियाँ केसे यह
अच्छा सममेंगी कि हमारे मरने पर हमारा पति दूसरी
स्ीका होकर रहै!
वह--तों इससे क्या मतलब तिकला !
में->इससे यह मतलब निकला कि यदि विधवा-
विवाह छुरा है तो विधुर-विवाह भी बुरा है। विधवा-विवाह
पुरुषों की दृष्टि से बुरा है, विधुर-विवाह खत्रियों की दृष्टि से ।
बह--ओफ ओह ! यह कलिक्ाल का प्रभाव है, जो
आप ऐसी बातें करते हैं।
में--खूब सोचे सत्ययुगी जी महाराज !
वह--हम सत्ययुगी न सही, पर विचार हमारे सत्य-
युगी ही हैं ।
में--बाबा आदम के समय के सब लोग ऐसे ही हैं ।
वह--अच्छा, विधवा-विवाह को जाने दीजिए, জী
शिक्षा के सम्बन्ध में आपके क्या विचार है ९
मैं--सत्री-शिक्षा पर आप पहले अपने विचार बताइए।
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