दुबे जी की चिट्ठियाँ | Dube Ji Ki Chitthiyan

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Dube Ji Ki Chitthiyan  by विजयानन्द-Vijayaanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खाली बेच्च पर बैठ कर पुनः वाचालाप होने लगा । वृद्ध महाशय बोले--हुवे जी, सच-सच बताइएगा, क्या आपको यह अच्छा मालूम होता है कि आपके सर जाने पर आपकी खी दूसरे पुरुष के पाख चली जाय ९ मेंने कहा--एक दिन लह्या की महतारी ने भी मुझसे यही प्रश्न किया था | इसका उत्तर मैते यही दिया था छि नहीं । इस पर उसने कहा कि फिर हम ख्ियाँ केसे यह अच्छा सममेंगी कि हमारे मरने पर हमारा पति दूसरी स्ीका होकर रहै! वह--तों इससे क्‍या मतलब तिकला ! में->इससे यह मतलब निकला कि यदि विधवा- विवाह छुरा है तो विधुर-विवाह भी बुरा है। विधवा-विवाह पुरुषों की दृष्टि से बुरा है, विधुर-विवाह खत्रियों की दृष्टि से । बह--ओफ ओह ! यह कलिक्ाल का प्रभाव है, जो आप ऐसी बातें करते हैं। में--खूब सोचे सत्ययुगी जी महाराज ! वह--हम सत्ययुगी न सही, पर विचार हमारे सत्य- युगी ही हैं । में--बाबा आदम के समय के सब लोग ऐसे ही हैं । वह--अच्छा, विधवा-विवाह को जाने दीजिए, জী शिक्षा के सम्बन्ध में आपके क्या विचार है ९ मैं--सत्री-शिक्षा पर आप पहले अपने विचार बताइए। १३




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