रूप-निघंटू | Roop Nighantu

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Roop Nighantu by रूपलाल वैश्य - Rooplal Vaishya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अजीर आदम माना जाता है। प्रायः काष्ठ बद्धता आर व।स्त के रोगों में पथ्य के रूप में ध्यवद्गवत दाता दे। इसकी पुल्टिस भी बनाई जाती है। आयुर्घेदीय मतानुसार गुण-देष-स्वादिष्ठ, रुचिकारी, पाक थार रस में भारा, शीतत्न, रुधर श्रार पित्तविकार का शांत करनेवा्ञा, वात-पित्तनाशक्‌, कफ श्रौर श्रामवातकारक तथा नकसीर फूटने में हितकारी हैं। यूनानी मतानुसार गण-दे।ष-पहलले दुज में गरम और दूसरे में तर हं। म॒दु, वातनाशक, कांतकारक, अपस्मार, पद्वात % और कफज रोगा को दूर करनवाल्ला, प्रकृति के लिये मूदुकारक, , क्रम क्रम से रेचक तथा रोध, उक्षा, शाथ, बहुमूत्र श्रर वृक्क, की शता नष्ट करनवाजा ह। कास राग म॑ इसका शरबत त्ञाभदायक हैं | यकृत भर आमाशय कं लिये हानिकारक है । वृपेनाशक-बादाम ओर सातिर । प्रतिनिधि-चिद्गगेजा और मुनकका । मात्रा-२-७ दान । प्रयाग-१. इसक बीज भ्रार छिलके खान से मंदाझि ओर अफर! हाता ह। बालका क श्वास म शक्कर आर [सरक म॑ पस कर पिक्लाना चाद्विपु। २. शरीर का गर्म्मी मिटान के বান खाड़ में मिलाकर खाना छाभदायक दे । ३, धाव पकान के लिये इसकी पुष्टिस बाघना भ्रच्छा हं। ४. सफद काढ़ क प्रारंभ में पत्ता का रस कगाना हितकारी हैं। ९. सूखा खासा में इसका सवन करना ग्रुयकारी हूं । ६. शरीरपुष्टि म॑ ( माट। करन का ) इसका सवन करना लाभदायक हूँ । ७. शाथ पर इसके सिरक म॑ भिगाकर खाना चांद्वएु । ८. मधूड़ा के राग मं इसका पानी म॑ उबाढकर उस पानी स कुछा करना अच्छा हैं । 8. गुदा के फाड़ पर इसकी पुढ्टिस बाधना चाद्विपु। ५०, रुघिर आर मास बढ़ान क लिये इसका मुरब्बा सवन करना अ्रच्छा ह । অই লক ছক লাক दे । ११. शरार के कठेार भाग पर पत्तों . अथवा फल्ले। की पुल्टिस लगाना चांहएु। १२. स्वाभाविक बद्ध- काएता म॑ ताज फला का कुछ दिना तक ट्गातार सवन करना নথ ॥ १३. चिंताजन्य ।शरपाढ़ा मे वक्त का छात्र का भस्म सरके या पानी मे पंसकर लप करन से पांड़ा शांत हतां ६ । १४. दंतपीढ़ा में इसक दूध या दूधिया रस म रूद्‌ भिगाक्ूर दात के नीच दुबान से क्ञाभ ह।ता हैं। १९. फाड़ भर गोठा की सूजन पर इसका पीसकर जल म उबालकर गुनयुना ज्ञप करना चारहिए्‌ । १६. दूध अथवा रुधिर का जमाव मिटान कं लिये इसका कदा की राख का पानी से घालकर स्वच्छ जल निथारकर फिर उस जल म दूसरा राख घोल्ञकर जज्ञ निथारे । सात बार इस प्रकार निधारा हुआ जलन पिल्यान से बहुत ज्ञाभ हाताहं। अजीर आदुम-न फा ] गुक्वर । उदुबर । अजीर दश्ती-[फा०] अजीर दस्ता-(फा० | अजीर बलू-| दिं० ] गढमाला । कंठमाद्धा रोग । अजोरी-[ ६० ] अंजीर । काकादु बरिका । अजीर आदमर-[ फा० ] गुलर | उदुंघर । शअजीर दश्तो-[ फा० মাসী दस्ती-| फार झेजुबार-| फा० ]। श्रजुवार । श्रेजवार | [ ५० ] श्रेजबार | बि- अज्जुवार-| रा० ]। जारी | मसलून । कटूमर । काकोदु रिका । काराद्भूमर । | | कठूमर । काकादु बरिका । काठाडूमर । अड वृद्धि ल०-1?01 9801 पता ৬1৮1])070028- 801): 60157607022 1318607%, यह हिमालय पहाड़ की नीची ओर ऊँची चाटियों पर काश्मीर से सिक्रम तक पाया जाता है । यह छुप जाति की वनापधि हे । इसके डंठल्न ४ से १२ इंच तक ऊँच, पतले श्रार सींधे द्वाते है। जड़वाली डंडी अगडे के बराबर मेरी हाती । जड़ के पत्त बड़, किचित्‌ अडाकार आर 4 से ६ इंच तक के घेरे में हाते हैं; किंतु ऊपर के पत्त लंबे और पतले हेत दे । फूलवाली শী $ से ४ इंच तक लंबी, सीधी श्र पतली हाती हं । एर जाल्ल रंग के हतदेश्रार फल घोरे छोट तथा किचित्‌ त्रिकाखाकार हतिदहै। कदु टोग कहत है किं इसका क्षुप ९-६ फुट ऊँचा होता है । इसकी जड़ श्रापधि के काम में श्रार्ता है । यह देखन में लाक्न रंग की आर स्वाद मे फीकी होती हैं । मेंटीरिया मेडिका के अ्रुसार गुण-देघष-इसकी जड़ संकाचक तथा शाथ में ढाभकार। हं। इसका काढ़ा साम रोग में द्या जाता हं । ईसका ऊकुल्ज्ना मसूड की सूजन श्रार गल्ले कं घाव मं राभकारी हं । दसस घाव धानं स वहं स्वच्छ होता है। विषम उवर म इसका जिंतियाना क साथ सवन कराते है । यह्‌ श्रंतिसार चार सधर्‌-साव क भवाह का राकनवाना है । . यूनानौ मताजुसार गुण-दाप-य तीसरे दओं म शीतल शार स्च ह । सपूण॒ श्रवयवा क संघर तथा फेफड़्‌ श्चार वचस्थल्ञ के रुधिर का रोधक ह । पत्त शार रुधिर क दाह का नाश करन- আভা, সঙ ক হি, পাক, বলল च्रार जीखातिसार का वद्धंक तथा नजल का राधकं टं । शीत प्रकृतिवाल का हानिकारक ह । द्पनाशक-साट । प्रतिनिधि-जरिश्क श्रार गिले अरमनी । मात्रा-४ स॒ ६ माशे तक। झटी-[दिं०] एरंड । अंडी । रड़ी । भरंड। | গ্ম-[ লও ] ৭. कस्तूरा । सगमद्‌ । मुश्क । २. श्रडा । डिब । ` छडकाकरा-|दि०] ३. एरंड | रड़ी । अरंड । ४. अ्रंडकाप । खुसिया । आअडक-| स० ] अंडकाप | आडू । अडकाकड़[-[ढिं०] ॥ चकातरा नींबू । मधुककंटी। पपई । एक अर प्रकार का बिजारा। डकाटरपष्पा-[स० + * ভাত वस्तांत्री । फजी । विधारा-भेद । श्रडकराष-| स ] श्रडक।(षक-[स ० গম खरबुज-[ ६6०] अड खरबूजा-[दि०] श्रेडग-[ स० ] गेहूं । गेपूम । छडगज-|स०] चकर्दद्‌ । चक्रमह्‌ । द्डज-| स० ] ৭. मदली । मस्स्य । २. पक्षो । चिद्या । ই. कस्तुरो । खगनामि । सुरू । अडजा-[स०] १. साँप । सपे । २. मछली । मीन। ३, पत्ती । चि।दृया । ४, कस्तृदी । सगमद्‌ । सुशक । श्रडब्रुद्धि-[ स० ] केपड्द्ध । | फा ] भाबननजूल् । वरम उट खुसिया । अर 11 $ (70९५७. ৭ जिस रोग में वायु अपन कारणों से पित ट्वाकर नीचे को गमन करती है, सूजन भार शूट उत्पन्न करती है, कोख में श्रडक । खुसिया । पपीता । वतङुभ फल । रद्मेवा ।




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