क्रान्तियुग की चिनगारियाँ | Krantiyug Ki Chingariyan

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Krantiyug Ki Chingariyan by सूर्य्यवली सिंह - Suryyawali Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पं० जवाहरलाल नेहरू की गयी दस्तकारियों की जगह में दूसरी दस्तकारियों का प्रचार नहीं किया गया है । इसका नतीजा यह्‌ हुआ है कि किसान साल में कम से कम चार महीने बेकार रहते हैं और किसी अकार की द्स्तकारी के न होने से उनके दिमाग भी इन्द हो जाते है । हिन्दुस्तान से बाहर जानेवाले और बाहर से यहाँ आनेवाले माल पर जो जकात खी जाती है वह ऐसी कायम की गई है ओर मुद्रा सम्बन्धी नियम इस प्रकार बसाये गये हैं. कि उनसे किसानों पर ओर भी चोश्च कद्‌ जाता है । हमारे यदोजो मार बाहर से आता है उसमें आधा हिस्सा इंग्लिस्तान मे बने हुए साल का है । जो ज़कात आनेवाले मार पर ली जाती है उसके द्र को देखने से मातम होगा कि उससे अंग्रेजी साल को फायदा पहुँचता है ओर इस तरीके पर जो आमदनी होती है उससे किसानों का बोमः कम करने के बदले, यहाँ की हुकूमत का, जो निहायत ही फिजूलखर्ची से चलायी जाती है, खचे निकारा जाता है । बिदेशी विनिमय की द्र तो ठेसी मनमानी से कायम की गयी है कि उससे इस देश के करोड़ो रुपये बाहर खिंचते चले जाते हैं । “राजनीतिक चष्ट से हिन्दुस्तान का दूजों जितना अंग्रेजी राज सें गिर गया है उतना कभी नहों गिरा था। किसी सुधार से जनता को असली राजनीतिक अधिकार नहीं मिले है। इसमें से जो सबसे बड़े हैः उन्दे भी विदेशी अधिकारियों के सामने सुकना बड़ता है। आज़ादी के साथ असली राय जाहिर करने और संगठित होने के अधिकार हमे हासिल नहीं हैं ओर हारे बहुत से देशवासी विदेशों में रहने के लिए मजबूर है और हिन्दुस्तान नहीं छू




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