तुलसी शब्दसागर | Tulsi Sabdha Sagar
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
556
श्रेणी :
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No Information available about भोलानाथ तिवारो - Bholanath Tiwari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६1
अधी-(स०)-पापी, भ्रधर्मी। उ० लाले पाले पोष तोपे
आलसी अभागी জী) (দি ২২২)
श्रचचल-{स>)-चचलता रदित) स्थिरः शात । उ० भु
विलोचन দ্যা গাব । (मा० १।२३९।२)
प्रचंमव-(ख० यमयो -द्यद्मा, ास्ययं । उ० सुर सुनि
स्यि चषभय माना । (मा० ६।७१।४)
शअचभा-आरचर्य, वरज ।
श्रचरः ल ° श्चा चमन) -पाचमन फक, पी करफे। उ पैटि
धिर मिक्षि तापसिहि) यदद पानि, फलु खाद् । (স»
इ1ण३) अ्रचरत-आचमन करते दी पीते ही | उ० जो
प्मचर्दैत नरष मातरि तेद् । (मा ०२।२३ १1४) शचवै-श्राच
मन करे ।
श्रचगर রদ चपलता, नटखटी, शरारत, श्रत्याचार 1
3० 1 जो सरिका कन्चु थचगरि फरहीं। (मा० ২৩৩২)
अचर-(स ०)-जो घल न सके, स्थाघर, जड़, ग्रचल | उ०
अचर-चर रूप दरि सर्मंगत सर्घटा बसत, छति बासना
धृप दीमै। তা ४७
अचरज-[स० ) श्रचमा, तश्नज्जुव्र ! ० यहुरि
फहु फरनायसन फी-ट जो यचरत राम । (मा० १।११ )
अचरलु-दे० 'भचरज” | उ० भाजु हमहि यढ अचरशु
लागा। (मा० २३८५)
झजल-(स०)-$ पहाढ़, जो न चले, स्थिर, २ घिरस्थायी,
सथ दिन रहनेवाला, टद, १ घावागमन से मुक्त, ७ स्थिर
बुदि (3० ९ सरत की कुसल अचल रूयायो चलि दैः !
(० ६।५५) २ रघुपति पद परम प्रेम तुलसी यहु श्रचल
नेम। (मि० 4 ९ ३ ोष् ्रचल जिमि जिय हरि पाह।
मा० ४।१४।४) ४ प्रचल धर्किचन सुचि सुखधामा ।
মাও ২18২৬) श्रचलच्देरी-श्रचूफ निशाना लगाने
याला रिकारी1उ° चिनद् धयल्रहेरी भ নাত
२।१३२।२) श्रचलमुना-(स ०)-पर्यत হল হন पा्यदी ।
उ० श्रचल-सुता मम श्रदल वयारि फर डोल्ट १(पा० ६९)
श्रजला-(स ०) -र्म्वी ।
अ्रजलु-दे० “अचल' । उ० उचफे उचकि चारि অনুজ भ्रयलु
भो । (क० ४११)
अचानक-सदसा, भकस्माव, बिना पूर्व सूचना के! उ०
तुलसी कवि तून, धरे धनु घान, धानक दीटि परी तिर
ভা । (ক, ২২২)
अपार-(ंस» आचार)-१ णाचार, आचरण, व्यवहार,
२ धर्म च्ययहार) ३ तरीका । उ १ स्यारथ-सदित सनेह
सयः, रचि भ्रनुद्रत धवार ] (दो? ५४८) २ जे मद
মাং धिकार भरे से अचार विचार समीप न जादीं। (फ०
७६४) थ्राचारप्रि चार-(स« झाचार विचार)-इन दो शब्दा
पा भाज भी एक साथ प्रयोग मिलता है पर भर्थ यही होता
है जो 'धाचार! का । धामिफ हृत्य, शौच, पूजा पाठ इत्यादि।
अचाय-दे० अचार!। उ० $ अस प्रप्ट अथारा भा
ससारा धर्म सुनिन्ष नहिं काया । (मा> ॥$८श छू)
अचारू-दे+ 'अचार!। 5० ३ हुहें कुल गुर सय रहोन््द
भ्रघार्। (मा० १।१२३।४)
चित (१}-{स०)-निर््विव, धिता रदित 1
रचिते (२)-(स० प्रपितय}- दै भ्मसिष्य |
#
1 সী अजगर
अचित्य-[स०)-१ जिसका चिंतन सभव न हो 1९ झतुलल,
३ चिता रहित, ४ आएशा स धिक) £ अकस्मात् ।
2 स०) १ अज्ञात, २ बेसुध, सक्षाहीन; ३े व्याकुल,
४ मूर्स, अज्ञानी, येसमझ, * अ्चेतन, जड़। उ० १
रावनं भाद् जगा तव; कहा भसगु वेत 1 ( प्र०
७१) ই নহি चिप्र गुर चरन प्रयु चले फरि सयदि
प्रचेत ! (मा० १।७६) ४ समु नहिं तसि पा्तपरन तय
বি হইত धचेत । (मा० १३० क) % छोटे बडे जीव
जेते चेतन अचेत ह । (ह० ६०)
अचेता-दे० अचेतः । उ०२ घले जारं सय लोग पेता ।
(मा० २३२०४)
श्रच्छ-(स अज्ष)-रार्ण का पुन, धषयङुमार । उ°
द्म वरिमर्वुन कानन भान दसानन धानन भान निषटाते।
(ह° 48)
श्रच्छुकूमारा-(स° যা যদ फा पुत्र षय
मार 1 उ० पुनि पज्यउ अच्छुकृमारा । (भा०९।
१८४)
श्रच्छत-(स० प्ररत) -भ्त, चावल । जो धत न षो ।
उ° ञ्च षुत श्रकुर ভীঘন लाजा । (मा० १।६४६।३)
अच्छुम-(स० अक्षम)-असमर्थ, झ्योग्य, शक्तिद्यीन। उ०
सयहि व सुखद प्रिय, अछुम प्रिय हितकारि ।
०9 ७४
ग्रच्छर-(स°प्रषर)-¶ अरः क; खः ग भादि) २.जिसफा
शाश न हो। ५१ ছকে হত मत्र पुनि लपर्दि सरिति
अनुराग । भ १।१४३)
अच्युत-(स०) $ णो गिरा म हो, २ दृढ़, झटत, ই
अग्नाशी, ४ विष्णु और उनके थबतारों फा नाम।
उ० ३े तज्ञ सर्य यक्षेश धष्युत्, विभो । (वि १९)
श्र्ठत-(ख० घत)-१ धरत, चावल, २ जो इटान
षो पूणं, २ रहते हुए, उपस्थिति में । उ० ३ नुम्दहि
घद्धत फो यरमै पारा । (मा० १।२७४।२)
अछोम-(स० अक्षोम)-गर्भीर, शांत, क्षोभ रद्दित, ग्लानि
या
আহীনা-ই* “জাম” 1 उ° चौर ती पुरह घीर घछोभा।
(सा० १२७४४)
श्रज-{स०)-१ जन्मा, जन्म रदित, २ रह्मा, ३ पिष
४ शिव, € फामदेव, ६ दशरथ के पिता का नाम, ७
यकक्रा, ८ साया, £ रोदिणी नत्र; १० मेध ।उ० १
क्ल निरपाधि निरयुन निरजन प्रह्म पम पयमेकमज
निकार । (वि० १०) २ करता फो श्र আগার को,
भरता को ष्रि जाम (स २७६) ४ घदसेसर सूल
पानि हर झनघ घज मित भविदित एपभेपगामी ! (पि
४६) ও तदुपि न तजत स्वान अन्न पर ज्यों फिरत विपय
अजुरागे। (ग्रि> ११७) ग्रजधामा-(स° चमधाम)-द्य-
सोक । उ० पद् पाता सीन धनयामा । (मा ९।१९१)
अजद्दि-प्रज यो, रस्या पो । उ० ममक फर् विरि
मयु प्रवि ममक त्त हन । (मा० ७१२२ ष)
झजगर-(स०)-१ एक प्रदार का यहुत मोटा घर्ष, २
्ालसी धादमो । उ० १ पैट रदसि चनगर दव चाद ।
(मार ७१०७४)
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