खड़ीबोली का लोक साहित्य | Industrial Law
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
54 MB
कुल पष्ठ :
518
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( जौ )
३. सूरज भंवारा--कन्या नित्य नहाकर एक लोटा जल सूरज को चढ़ाती है ।
४. दांतन कनन््या--चार बल्ने' (ब्राह्ममुहर्त में) उठ कर दाँतन करके तब
बोलती है और ऐसा ही साल भर नियमतः करती है ।
५. कौड़ी गहला--एक छोटा सा घर ( चाँदी का ) बनाकर और एक
पुतली चाँदी की बनाकर ससुराल भेजी जाती है । कन्या प्रतिदिन एक कौड़ी
या पैसा डालती थी और साल के बाद वह ससुराल को भेज दिया जाता था ।
६. चिड़िया चुगाई --कुछ दुर मे धरती लीप कर उस पर बाजरा
बखेर कर चिडिया चुगाई जाती हैँ ओर नन्द के छिपे बर्षान्त में इजार ओच्ी
चिड़िया चुगाने की निशानी भेजी जाती है ।
७. फूफस के थुआ देना--निम्न पद्म कह कर बहू फूफस को गुड़ की
भेली देती है---
ससुरे बहन बलस कौ कुजा ।
मेरे रेखे भट्टी कौ थआ ॥
८. सास की रंसाई--कड़ी बात कट् कर सासू को रुष्ट करना ।
९. सासं निमाई--सास्ं को जिमाकर प्रसन्न करना ।
१०. ससुर जिमाईइं --ससुर के कन्धे पर दुशाका डाक कर मेवा भर देते
हैं और दो चार रुपये डाल देते हैं---
ससुर मेरा वाला भोला ।
भर भेवा का झोला ।
११. ससुर को पिन्नी देना--दमकन पिन्नी चमकन सुसरा यह कहा
जाता है ।
१२. लेले पिया मसरी , मेरे मन से कभी न बिसरी ।
१३. जेठ जिठानो का बहा--
आयत यापत धरी सिठाई ।
जेठ जिठानी रिल मिल खाई ।
१४, भंगन का बहाु---
चार कचोड़ी ऊप्पर जीरा ।
कदी ना बन् मोरो का कीरा ॥
१५. जेठ का बेटा--
चार कचोरी ऊपर दही ।
जेठ के बेटे ने चाची कटी ॥
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