खड़ीबोली का लोक साहित्य | Industrial Law

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Industrial Law by सत्या गुप्त - Satya Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( जौ ) ३. सूरज भंवारा--कन्या नित्य नहाकर एक लोटा जल सूरज को चढ़ाती है । ४. दांतन कनन्‍्या--चार बल्ने' (ब्राह्ममुहर्त में) उठ कर दाँतन करके तब बोलती है और ऐसा ही साल भर नियमतः करती है । ५. कौड़ी गहला--एक छोटा सा घर ( चाँदी का ) बनाकर और एक पुतली चाँदी की बनाकर ससुराल भेजी जाती है । कन्या प्रतिदिन एक कौड़ी या पैसा डालती थी और साल के बाद वह ससुराल को भेज दिया जाता था । ६. चिड़िया चुगाई --कुछ दुर मे धरती लीप कर उस पर बाजरा बखेर कर चिडिया चुगाई जाती हैँ ओर नन्द के छिपे बर्षान्त में इजार ओच्ी चिड़िया चुगाने की निशानी भेजी जाती है । ७. फूफस के थुआ देना--निम्न पद्म कह कर बहू फूफस को गुड़ की भेली देती है--- ससुरे बहन बलस कौ कुजा । मेरे रेखे भट्टी कौ थआ ॥ ८. सास की रंसाई--कड़ी बात कट्‌ कर सासू को रुष्ट करना । ९. सासं निमाई--सास्‌ं को जिमाकर प्रसन्न करना । १०. ससुर जिमाईइं --ससुर के कन्धे पर दुशाका डाक कर मेवा भर देते हैं और दो चार रुपये डाल देते हैं--- ससुर मेरा वाला भोला । भर भेवा का झोला । ११. ससुर को पिन्नी देना--दमकन पिन्नी चमकन सुसरा यह कहा जाता है । १२. लेले पिया मसरी , मेरे मन से कभी न बिसरी । १३. जेठ जिठानो का बहा-- आयत यापत धरी सिठाई । जेठ जिठानी रिल मिल खाई । १४, भंगन का बहाु--- चार कचोड़ी ऊप्पर जीरा । कदी ना बन्‌ मोरो का कीरा ॥ १५. जेठ का बेटा-- चार कचोरी ऊपर दही । जेठ के बेटे ने चाची कटी ॥




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