विक्रमीय प्रथम सहस्त्राब्दी तक | Vikramiya Pratham Sahstriya Tak

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Vikramiya Pratham Sahstriya Tak by अलोका गुप्ता - Aloka Gupta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(३) स्कृत नाटक की उत्पत्ति सानते हैं । संस्कुत नाटकों की उत्पत्ति कब हुई, इसके 'लिगे कॉई सुमिश्वित लिधि निर्धारित करना समव नहीं है | फिए भी सरतमुनि के नाट्यशास्त्र मैं नाटक के तसवाँ का मुद्दम विश्लेडाण देखकर कहा जासकता हैं पक सस्कत नाटककी का लम्भ मरतपुनि के हुत पहले होश गया था । परतपुनि के नाट्यशारत से मी पशलें पाराशर ,शिलाली ,कौष्ल आदि नट्सवकारँ ये नाटण्क्ला की प्रस्फटित कर रखा था |नाटकी वा जन्म इनके लदाणगन्थी की रचना सै पहले अवश्य हुआ था, खीर नाटक मारतीय समाज मैं मनी रंजन के एक साधन के रूप मैं इतना प्रतिष्ठित ही बुका था कि बेयाकण पाशिनि को सी *पाराशर्पशिला डछिम्यां : (४1२1 श्०)कह कर उनके बा उल्लेब करना पडा था. । पालिनि का समय नाहै कोई कितना ही पीड़े हें आना नाहें, ता मी उनकी निस्तशम सीमाएऐखा ३०० आगे नहीं आती । अत: सारत में संस्कृत नाटवां का जन्म ३०० से बहुत पहले ही ही गया था । बुषलर मर के अनुसार यह समय ४०० खुण्पु० है, पान्तु यह समय बीर मी १७० वर्ण पीड़े हट सकता हे, क्यों कि ररयगुजा प्रदेश राषगढ़ की पहाड़ियों में कलह ऑसले ( (०.८८ 0०८८५ 2 ने बाज से सा बर्जा से मी पहले जिन दी गुफाबां का जविष्कार किया था- उनमें प्राप्त शिलाडिपि का पाटीदार की चैष्टा करते हुए डा व्लाच (फेम: ८०८४... को क्व शब्द मिला , जिसका बअध उन्हींवे* अभिनय थे दा बताया । क्वल यहीं पते की रूपा मीं भी + जिस पदा डाछने कै लिये सकी के बैठने के छिये मी उचित व्यवस्था है । एगमंघ की दीवारों चैरबने हुए चित्रों का स्लान अस्तित्व अब थी विधषान है । व्लाच महोदय में शिल दितीय अथवा तुतीय जुध्पु०निवा रत क्या 5० मर ; तथिग रन ०0. काम. है 50९ 7 रथ ् का का ही. न पं दिला थक ६ 7१०2 हु




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