धर्मसिंधु | Dharmsindhuh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६७) का भी उल्लेख किया हैं। मीमांसावातिक (तंत्रवातिक) एवं शास्त्रदीपिका पर व्याख्या भी लिखी है। इनका शूद्रकमछाकर, विवादताण्डव, नि्णयकमछाकर या निर्णयसिधु तो बहुत ही असिद्ध है। इनमें भी निणयसिन्धु सबसे अधिक प्रसिद्ध है। निर्णयसिन्धु की रचना १६१२ ई० में हुई थी । नीलकण्ठ भटर ( १६१०१६४५ ई० उ० ) नीलकण्ठ भट्ट नारायण भद्दु के पौत्र और दछाद्धूर भट्ट के कनिष्ठ पृत्रथे। शङ्कुर भट्ट एक उद्भट मीमांसक थे। उन्होंने मीमांसा में शास्त्रदीपिका-व्याख्या, विधिरसायनदूषण, मीमांसाबालप्रकाश तथा धमशास्त्र में दैतनिणय, धरमंप्रकाश या सवधर्मप्रकाश नामक ग्रन्थ लिखे । नीलकण्ठ ने यमुना ओर चम्बल के संगम के भरेह नामक स्थान कै सेंगर वंशी बुंदेल सरदार भगवन्त देवके राम्मात में भगवन्त भास्कर नाम का धमंशास्त्रसम्बन्धी निबन्ध भी लिखा, जो १२ मयूखों (संस्कार, आचार काल, श्राद्ध, नीति, व्पवहार, दान, उत्सर्ग, प्रतिष्ठा, प्रायश्चित्त, शुद्धि, शन्ति) प्रकरणोमेंहै | पर्विमी भारत के कानून में उनका व्यवहारमयूखं प्रामाणिकं ग्रन्थ माना जाता है । सित्रमिश्र का वीरसित्रोद्य ( १६१०-१६४० ई० छ० ) वीरमित्रोदय धर्मशास्त्र के विषयों पर चतुर्व॑र्गचिन्तामणि के समान एक विश्ञाल निबन्ध है। इसका व्यवहारविवेचत बहुत ही उपयुक्त है অই कई प्रकाज्यों में विभाजित है। मित्रमिश्र वादविवाद में नीलकण्ठ से बहुत आगे बढ़े चढ़े हैं। हिन्दू कानून की वाराणसी शाखा में वीरमित्रो- दय का बड़ा महत्त्व रहा है। ये हंसपण्डित के पौत्र और परशुराम पण्डित के पुत्र थे। हंसपण्डित गवाहियर के निवासी थे । अनन्तदेव ( १६५०-१६८० ई० उ० ) अनन्तदेव ने धमशा पर स्मृतिकौस्तुभ नामक एक निबन्ध लिखा, जिसमें संस्कार, आचार, राजधमं, दान, उत्सर्ग, प्रतिष्ठा, तिथि ओर संवत्सर नाम के सात प्रकरण है । इसका आधुनिक भ्यायाल्यो में पर्याप्त श्रादर रहा है। ये महाराष्ट्र सन्‍्त एकनाथ के वंशज थे । बाज- बहादुर उनके आश्रयदाता थे । # नागेजि भटर १७००-१५५० ( ई० उ० ) नागोजि भट्ट एक अद्भूत उत्कृष्ट कोटि के विद्वान ये। यद्यपि उनकी अत्यन्त प्रसिद्धि व्याकरण में है, तथापि उन्होनि साहित्य, धम॑शासखर, योग तथा अन्ध शास पर भी अधिकारपूर्ण लिखा है । उनके आचारेनदुशेल र. अशौचनिर्णय, तिथीम्दुरेलर, तीरथेनदुशेखर, प्रायरिवत्ेम्दुशेख र, श्रादधेन्दुदोखर, सपिण्डीमञ्जरी, सापिण्डयदीपक नामके धर्मशास्त्रप रक ग्रन्थ हैं। नागोजि भट्ट महाराष्ट्र ब्राह्मण थे। उनका उपनाम काले” था। वे प्रसिद्ध वैयाकरण भट्टीजिदी क्षित की परम्परा में हुए थे | वे भट्टोजिदीक्षित के पौन्र के शिंष्य थे । बालभट्ट ( १७५३०-१८२० ईं० उ० ) लक्ष्मी व्याख्या या बालंभट्वी नाम का मिताक्षरा पर भाष्य है। कहा जाता है कि यह लक्ष्मी देवी नामक स्त्री के द्वारा प्रणीत है। बालंभट्टी के प्रारम्भ में विदित होता है कि लक्ष्मी पाय- गुण्डे की पत्नी थी और मुद्गल गोत्र के खेरडा उपनामक महादेव की पुत्री थी। लक्ष्मी.का - दसरा चाम उमाभीथा। आचार भाग के अन्त में लिखा है कि इसकी लेखिका लक्ष्मी महादेव और उमा की पुत्री है तथा वैद्यनाथ पायगुण्डे की पत्नी और बालकृष्ण की माता है। लक्ष्मी ते नारियों के स्वत्वं की रक्षा करने का खूब সমংল किया ই |... ই ঘুও জিও भू० বি




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