सारन्धा | Sarandha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सारन्धा
तब गौरव थी जिसकी थाती
वह स्वाभिसान की मद्माती
উদ্ধত राज्य निभेय उनको
धक्के देकर थी कराती)
कितने ही मानी आये भृूप--
तज कर अपना नैतिक स्वरूप
वन कर स्वजाति के लिये राहु-
ढा रहे अनय थे बिविध रूप |
कुल कीति-कौमुदी को ख्रो कर
बेटियों और बहने दे कर--
इतराते थे सम्राटों के--
ये सभी सुर साले हो कर।
अनिरुद्धसिंह इमको निहार
कर॒ उठते नीरवे चौत्कार
सम्मान भाव से भावित वें
हो उठते पायल बार बार |
कैसे सहते इनं बातों को
मर्यादा पर इन धातो कौ
वे बढ़ कर करते दमन सदा
अरि के कठोर उत्तातों को।
१५
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