महाभारत | Mahabharat

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Book Image : महाभारत  - Mahabharat

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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পি আছ আহা লি ~ =+ পক্ষ সু ও +$ ५६ ६ च ৯ के ५ ~~~ षद्सप्तवितमोऽध्यालः ৪০২৩ स्य्य्य्य्य्य्य्यय्य्य्य्य्य्य्य्थ्य्य्य्य्स्स्य्ल््य््य्य्च्य्य्य््लस्स्स्स्ल्ल्सस्ट्ट्स्स्स्स्स्ल्स््ल्ल््ल्््ल्ह्ल्ड्स्ल्ल्ल्ल्ल्ट्ट्स्स्ल्स्स्ल्ल््ड्ट्स्स्स्ल्ड्स्ट्ट्डिि नानाखरान्‌ परय विसुख्य सर्व तथा द्रवन्ते बलिनों घातराष्ट्राः॥) विशोक ! देखो देखो; मेरा बर। मेरे आधार्तोंते शनरुओंकी सेना विदीर्ण हो उठी है। देखो, धृतराष्ट्रके सभी बलवान्‌ पुत्र नाना प्रकारके आर्तनाद करते हुए भागने लगे हैं ॥ ईक्षस्वैतां भारती दीर्यमाणा- मेते कस्माद्‌ विद्ववन्ते नरेन्‍्द्राः । व्यक्तं घीमान्‌ सव्यसाची वस्यः सेन्थं लतच्छाद्यत्याश्यु वणिः ॥ २३॥ सारथे { इस कौरवसेनापर तो दृष्टिपात करो । इसमे मी दरार पड़ती जा रही है। ये राजालोग क्यों भाग रहे हैं ! इससे तो स्पष्ट जान पड़ता है कि बुद्धिमान्‌ नरश्रेष्ठ अज्ुन आ गये | वे ही अपने बार्णोद्दारा शीघ्रतापूर्वक्क इस सेनाको आच्छादित कर रहे हैं || २३॥ पद्य ध्वजांश्व दृवतो विशोक नागान्‌. हयान्‌ पत्तिखंघांस्य संख्ये। रथान विकीर्णाज्शरशक्तिताडितान पदयस्तेतान्‌ रथिनश्वेव सूत ॥ २८ ॥ , विशोक | युद्धखलछमें भागते हुए. रथॉकी ध्वजाओं; हाथिर्यो, घोडौ ओौर पैदलसमूरलौको देखो । सूत ! वाणो ओर शक्तियेति प्रताडित दोकर बिखरे पडे हुए इन रथौ ओर रथिर्योपर भी दृष्टिपात करो ॥ २४॥ आपूर्यते कौरवी चप्यमीष्णं सेना दातो सुभृश्तं हन्यमाना । घनंजयस्याशनितुल्यवेगे- श्रेस्ता शरेंः काश्चनवर्हिवाजें? ॥ २५॥ अर्जुनके बाण वच्रे समान वेगशाखी द । उनम सोने और मयूरपिच्छके पंख लगे हैं| उन वार्णद्रारा आक्रान्त हुई यह कोरवसेना अत्यन्त मार पड़नेके कारण बारंबार आर्त- নাহ कर रही है ॥ २५ ॥ पते द्रवन्ति स्म रथाश्वनामाः पदातिसद्वानतिमदयन्तः । सम्मुखमानाः कौरवाः खवे एव द्रदन्ति लागा इव दाष्भीताः ॥ २६॥ ये रथ) घोड़े और हाथी पेदलसमूहोकी कुचलते हुए, भागे जा रहे हैं | प्रायः सभी कोरव अचेत-से होकर दावानल-. ` के दाहसे डरे हुए. द्वाथियोंके समान पलायन कर रहे हैं २६ हादाङृतादवैव रणे विश्चोकं मुञ्चन्ति नादान्‌ विपुरान्‌ गञम्द्राः ॥ २७ ॥ विरोक ! रणभूमिमे षव ओर हाहाकार मचा हुआ है। बहुसंख्यक गजराज बड़े जोर-जोरसे चीत्कार कर रहे दै ॥२७॥ विशोक उवाचं कि भीम नैनं स्वमिदाश्रणोषि विस्फारितं गाण्डिवस्यातिघोसम्‌ । ~~~ करुद्धेन पार्थेन विकृष्यतोऽद्य कचिन्नेमौ तव कर्णौ विनष्टौ ॥ २८॥ विशोकले कहा--भीमसेन ! क्रोधर्मे भरे हुए अर्जुनके द्वारा खींचे जाते हुए गाण्डीव घनुषकी यह अत्यन्त भयंकर टंकार क्या आज आपको सुनायी नहीं दे रही है ! आपके ये दोनों कान बहरे तो नहीं हो गये हैं १ ॥ २८ ॥ सर्वे कामाः पाण्डध ते सख्द्धाः कपिहांसो दृश्यते हस्तिसेन्ये। नीछादू घनाद्‌ विद्युतमुचरन्ती तथा पद्य विस्फुरन्ती धचज्योम्‌॥ २९ ॥ पाण्डुनन्दन ! आपकी सारी कामनाएँ. सफल हुईं। हाथि्योकी सेनमि अजुनके रथकी ध्वजाका वह वानर दिखायी दे रदा है! काठे मेधसे प्रकट होनेवाटी बिजलीके समान चमकती हद गाण्डीव घलुषकी प्रस्यञ्चाको देखिये ॥ २९ ॥ कपिद्यसौ वीक्षते सर्वतो वे ध्वजाग्रमारद्य ध्नेजयस्य । विच्रासयन्‌ रिपुखंघान्‌ विमं विभेम्यस्मादात्मनैवामिवीक्ष्य ॥ ३० ॥ अ्ुनकी ध्वजाके अग्रभागपर आरूढ हो वह वानर सव ओर देखता और युद्धस्थलमें शत्रुसमूहोंक्रो मबभीत करता है। मैं खयं भी देखकर उससे डर रहा हूँ || ३०॥ विश्राजते चातिमात्र कियीठ॑ विचिष्मेतश्च धनंजयस्य । दिवाकराभो मणिरेष दिभ्यो विभ्राजते कैव. किरटसंस्थः ॥ ३१ ॥ . घनंजयका यह विचित्र मुकुट अत्यन्त प्रकाशित हो रहा है | इस मुकुटमें छगी हुईं यह दिव्य मणि दिवाकरके समान देदीप्यमान्‌ होती दै ॥ ३१ ॥ - ‹ ` पाश्वं भीमं पाण्डुणश्रप्रकाशं पद्यस्व र्कं देवधृस्तं सघोषम्‌ । . अभीचुहस्तस्य जनादनस्य विगाहमानस्य चमू परेषाम्‌ ॥ ३२॥ रचिप्रमं वदनां छुरास्त पाश्वं स्थितं पद्य जनार्दनस्य । चक्र यश्चोवर्धने केशवस्य सदार्चितं यदुभिः पय वीर ॥ ९६ ॥ वीर { अरजुनके पाद्वभागसे श्वेत वादलके समान प्रकाशित होनेवाला और गम्भीर घोष करनैवाखा देवदत्त नामक भयानक शक्ल रक्खा हुआ है; उसपर दृष्टिपात कीजिये। साथ ही हार्थो्में घोड़ोंकी बागडोर लिये शत्रुओकी सेनामें घुसे जाते हुए. भगवान्‌ श्रीकृष्णकी वगलमें सू्यक्े समान ः प्रकाशमान चक्र विद्यमान है; जिसकी नामिमें वज् और किनारेके भागमिं छुरे लगे हुए हैं| भगवान्‌ केशवका वह




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