महाभारत | Mahabharat
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
82 MB
कुल पष्ठ :
914
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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षद्सप्तवितमोऽध्यालः
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नानाखरान् परय विसुख्य सर्व
तथा द्रवन्ते बलिनों घातराष्ट्राः॥)
विशोक ! देखो देखो; मेरा बर। मेरे आधार्तोंते
शनरुओंकी सेना विदीर्ण हो उठी है। देखो, धृतराष्ट्रके सभी
बलवान् पुत्र नाना प्रकारके आर्तनाद करते हुए भागने लगे हैं ॥
ईक्षस्वैतां भारती दीर्यमाणा-
मेते कस्माद् विद्ववन्ते नरेन््द्राः ।
व्यक्तं घीमान् सव्यसाची वस्यः
सेन्थं लतच्छाद्यत्याश्यु वणिः ॥ २३॥
सारथे { इस कौरवसेनापर तो दृष्टिपात करो । इसमे मी
दरार पड़ती जा रही है। ये राजालोग क्यों भाग रहे हैं !
इससे तो स्पष्ट जान पड़ता है कि बुद्धिमान् नरश्रेष्ठ अज्ुन आ
गये | वे ही अपने बार्णोद्दारा शीघ्रतापूर्वक्क इस सेनाको
आच्छादित कर रहे हैं || २३॥
पद्य ध्वजांश्व दृवतो विशोक
नागान्. हयान् पत्तिखंघांस्य संख्ये।
रथान विकीर्णाज्शरशक्तिताडितान
पदयस्तेतान् रथिनश्वेव सूत ॥ २८ ॥
, विशोक | युद्धखलछमें भागते हुए. रथॉकी ध्वजाओं;
हाथिर्यो, घोडौ ओौर पैदलसमूरलौको देखो । सूत ! वाणो ओर
शक्तियेति प्रताडित दोकर बिखरे पडे हुए इन रथौ ओर
रथिर्योपर भी दृष्टिपात करो ॥ २४॥
आपूर्यते कौरवी चप्यमीष्णं
सेना दातो सुभृश्तं हन्यमाना ।
घनंजयस्याशनितुल्यवेगे-
श्रेस्ता शरेंः काश्चनवर्हिवाजें? ॥ २५॥
अर्जुनके बाण वच्रे समान वेगशाखी द । उनम सोने
और मयूरपिच्छके पंख लगे हैं| उन वार्णद्रारा आक्रान्त
हुई यह कोरवसेना अत्यन्त मार पड़नेके कारण बारंबार आर्त-
নাহ कर रही है ॥ २५ ॥
पते द्रवन्ति स्म रथाश्वनामाः
पदातिसद्वानतिमदयन्तः ।
सम्मुखमानाः कौरवाः खवे एव
द्रदन्ति लागा इव दाष्भीताः ॥ २६॥
ये रथ) घोड़े और हाथी पेदलसमूहोकी कुचलते हुए,
भागे जा रहे हैं | प्रायः सभी कोरव अचेत-से होकर दावानल-. `
के दाहसे डरे हुए. द्वाथियोंके समान पलायन कर रहे हैं २६
हादाङृतादवैव रणे विश्चोकं
मुञ्चन्ति नादान् विपुरान् गञम्द्राः ॥ २७ ॥
विरोक ! रणभूमिमे षव ओर हाहाकार मचा हुआ है।
बहुसंख्यक गजराज बड़े जोर-जोरसे चीत्कार कर रहे दै ॥२७॥
विशोक उवाचं
कि भीम नैनं स्वमिदाश्रणोषि
विस्फारितं गाण्डिवस्यातिघोसम् ।
~~~
करुद्धेन पार्थेन विकृष्यतोऽद्य
कचिन्नेमौ तव कर्णौ विनष्टौ ॥ २८॥
विशोकले कहा--भीमसेन ! क्रोधर्मे भरे हुए अर्जुनके
द्वारा खींचे जाते हुए गाण्डीव घनुषकी यह अत्यन्त भयंकर
टंकार क्या आज आपको सुनायी नहीं दे रही है ! आपके
ये दोनों कान बहरे तो नहीं हो गये हैं १ ॥ २८ ॥
सर्वे कामाः पाण्डध ते सख्द्धाः
कपिहांसो दृश्यते हस्तिसेन्ये।
नीछादू घनाद् विद्युतमुचरन्ती
तथा पद्य विस्फुरन्ती धचज्योम्॥ २९ ॥
पाण्डुनन्दन ! आपकी सारी कामनाएँ. सफल हुईं।
हाथि्योकी सेनमि अजुनके रथकी ध्वजाका वह वानर दिखायी
दे रदा है! काठे मेधसे प्रकट होनेवाटी बिजलीके समान
चमकती हद गाण्डीव घलुषकी प्रस्यञ्चाको देखिये ॥ २९ ॥
कपिद्यसौ वीक्षते सर्वतो वे
ध्वजाग्रमारद्य ध्नेजयस्य ।
विच्रासयन् रिपुखंघान् विमं
विभेम्यस्मादात्मनैवामिवीक्ष्य ॥ ३० ॥
अ्ुनकी ध्वजाके अग्रभागपर आरूढ हो वह वानर सव
ओर देखता और युद्धस्थलमें शत्रुसमूहोंक्रो मबभीत करता
है। मैं खयं भी देखकर उससे डर रहा हूँ || ३०॥
विश्राजते चातिमात्र कियीठ॑
विचिष्मेतश्च धनंजयस्य ।
दिवाकराभो मणिरेष दिभ्यो
विभ्राजते कैव. किरटसंस्थः ॥ ३१ ॥
. घनंजयका यह विचित्र मुकुट अत्यन्त प्रकाशित हो रहा
है | इस मुकुटमें छगी हुईं यह दिव्य मणि दिवाकरके समान
देदीप्यमान् होती दै ॥ ३१ ॥ - ‹
` पाश्वं भीमं पाण्डुणश्रप्रकाशं
पद्यस्व र्कं देवधृस्तं सघोषम् ।
. अभीचुहस्तस्य जनादनस्य
विगाहमानस्य चमू परेषाम् ॥ ३२॥
रचिप्रमं वदनां छुरास्त
पाश्वं स्थितं पद्य जनार्दनस्य ।
चक्र यश्चोवर्धने केशवस्य
सदार्चितं यदुभिः पय वीर ॥ ९६ ॥
वीर { अरजुनके पाद्वभागसे श्वेत वादलके समान
प्रकाशित होनेवाला और गम्भीर घोष करनैवाखा देवदत्त
नामक भयानक शक्ल रक्खा हुआ है; उसपर दृष्टिपात कीजिये।
साथ ही हार्थो्में घोड़ोंकी बागडोर लिये शत्रुओकी सेनामें
घुसे जाते हुए. भगवान् श्रीकृष्णकी वगलमें सू्यक्े समान
ः प्रकाशमान चक्र विद्यमान है; जिसकी नामिमें वज् और
किनारेके भागमिं छुरे लगे हुए हैं| भगवान् केशवका वह
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