समर्पण और साधना | Samrpan Aur Sadhna
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
462
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
भवनिप्रसाद मिश्र - Bhavaniprasad Mishr
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यशपाल जैन - Yashpal Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ল্সাহাীনি
श्रीमा के चन
श्रीमा ने कहा
जानकी माका तो जन-जनादन सेवा मे समग्र जीवन अपण है।
प्राण-स्पर्शी हौ आदश ग्रहृण करणीय 1
समझो, हमारी मा वी शक्ति सवम है। सबको मा मय होकर देखें । भगवान मा भी
है--परमपिता, परम माता भी है 1 परम वधु सखा स्वामी भी है।
तुम्हारी मा ने सतत सेवामय किया-्योग किया है।
यजो क्रिया योग है न जितनी ज़ियाएँ है भगवान की प्राप्ति के लिए हैं। इसलिए इस
क्रियान्योग कहा है।
उनके (जानकी मा के) आनद म काई बाघा न दे । अपने आनद म, शाति म मंगन होकर
रहे । उसीमे उतको मगन होकर रहन दो । रामायण का पाठ, सत्सग बहुत अच्छी बात है । मोह
मुक्त होने वी सदा कोशिश करना । मोह युक्त न हो ।
माको लिखो तुम जसी मा हुई है बसी दुनिया म सब मा हा, ऐसी भगवान से
प्राथना करो ।
सत्य मे निष्ठा हो, तत्त्वचितन हो। भगवत्वितन वा यही फल है कि वह सदभावना
त्मक माग खाल देते हैँ। लेकिन सच्चाई होनी चाहिए ।
(श्रोमा आनदमयी की मदालसायहन से हुई वार्ता)
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