समर्पण और साधना | Samrpan Aur Sadhna

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Samrpan Aur Sadhna by भवनिप्रसाद मिश्र - Bhavaniprasad Mishrयशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ল্সাহাীনি श्रीमा के चन श्रीमा ने कहा जानकी माका तो जन-जनादन सेवा मे समग्र जीवन अपण है। प्राण-स्पर्शी हौ आदश ग्रहृण करणीय 1 समझो, हमारी मा वी शक्ति सवम है। सबको मा मय होकर देखें । भगवान मा भी है--परमपिता, परम माता भी है 1 परम वधु सखा स्वामी भी है। तुम्हारी मा ने सतत सेवामय किया-्योग किया है। यजो क्रिया योग है न जितनी ज़ियाएँ है भगवान की प्राप्ति के लिए हैं। इसलिए इस क्रियान्योग कहा है। उनके (जानकी मा के) आनद म काई बाघा न दे । अपने आनद म, शाति म मंगन होकर रहे । उसीमे उतको मगन होकर रहन दो । रामायण का पाठ, सत्सग बहुत अच्छी बात है । मोह मुक्त होने वी सदा कोशिश करना । मोह युक्त न हो । माको लिखो तुम जसी मा हुई है बसी दुनिया म सब मा हा, ऐसी भगवान से प्राथना करो । सत्य मे निष्ठा हो, तत्त्वचितन हो। भगवत्‌वितन वा यही फल है कि वह सदभावना त्मक माग खाल देते हैँ। लेकिन सच्चाई होनी चाहिए । (श्रोमा आनदमयी की मदालसायहन से हुई वार्ता)




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