रामचरितमानस और पूर्वांचलीय रामकाव्य | Ramcharitra Mans Aur Purvachliy Ram Kavya

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Ramcharitra Mans Aur Purvachliy Ram Kavya by रामनाथ त्रिपाठी - Ramnath Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विपय-मूवौ १५ हनुमान--१२० [ रावण (प्रतिनायक )--२२३ / सीता ---२३३ 1 वौशल्या-- २४६ ( बवेयी--२५६ | অমঘান্গ--২০ 1 ६ कथः! विधान २६३ बथाओ वा पारस्परिव साम्य वपम्य, श्वेः पारण भोर नूतन प्रणा फी और इगित परत हुए वधावस्तु वा काण्डानुसार अध्ययत--२६३ / भादिकाण्ड--- २६६ | भयोध्याषाण्ड--३११ | पररण्यकाण्ड-३२१ 1 किव्किपाकाण्ड--६३४ | सुदरकाण्ड--३४३ | लकाका्ड--३५८ नौर उत्तरकाण्ड ३७८ । ७ फाव्य सोष्ठव २६२ भाव च्यजना--३६२ प्रकृति विनश्रए--४१६ / सवाद-सौ-द --४२३ / रचना कौनत- भाषा, जलवार नीर छन्द--४२८ । छ दश्चन मोर भविति ४६० राम सीता दिथयक धारणा -मगृण निगु ण, माया, ममार, विष्णुत्य त्रिदेषा मं उच्चस्थान, राम बा इृष्णत्व--अममीया वे' जद्ग त शृष्ण, उड़िया वे' जगनाथ 1 मातस मे राम वे ब्रह्मत्व का उनयन। मौता--४६५--भ्रवतार-- 2६६ / नामकोतन ८६६ / मविति- परह कष्णामप, दीनता प्रकाश, निष्काम भविन, भविति म विदुलता, भक्रि जना-दालन गास्वामी जी की विशेपताए ~ नान भवित वा समवय, भविन मे सामाजिक्ता एवं नतिक' आदश--४७२ । उपसहार--.४४० (समस्त गोप प्रवय बा सार) सहायक प्रथो को सूचौ--४८६ शुद्धिपत्र॒--४६७




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