विचक्षण - वचनामृत | Vichakshan - Vachanamrit

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Vichakshan - Vachanamrit by भँवरीबाई रामपुरिया - Bhanvaribai Rampuriya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भँवरीबाई रामपुरिया - Bhanvaribai Rampuriya

Add Infomation AboutBhanvaribai Rampuriya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
(৮ ণ্যযয7 নহামল্যাযা তলোটাতেহাযাযাতাঘি হাতিটি स्व-स्प चिन्तन बीतराग भगवत को पकडकर ही हम वीतराग चन सकंगे । चितेरा (चित्रकार) चित्र तैयार करताह । कंसे करता ह ? লিল को लेकर, सामने रखकर वरावर निरीक्षण करके ही वह उसे बनाता हैं । हम भी वीतराग में रही हुई शक्तियों का, वीतराग कैसे वने इस मागं का, वीत- राणत्व के विकास का, वीतराग अवस्था क स्वरूप के चिन्तन का, वीतराग मुद्रा का तथा वीतराग की वाणी का आलम्बन लेकर वीतराग वेगे । जिन भावो का चितन वीतराग ने “वीतराग” वनने को लिये किया, उन्हीं भावों का चिन्तन, मनन दम भी करेंगे । ऊँसी रहो भावना जाफी निमित्त सव कं लिए समान कासे करता हैं, किन्तु फल की प्राप्ति अपने-अपने भावों के अनुमार होती है। भगवान्‌ अथवा सद॒गुर सव के लिए समान निमित्त ह, हजार व्यक्ति वन्‍्दन-नमत बरने को आते है, उनमें फल की उपलब्धि सव को अपने- अपने भाव के अनुसार ही मिलतो है, क्योंकि भाव सवके स्वाधीन है 1 बयनामुत




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now