विचक्षण - वचनामृत | Vichakshan - Vachanamrit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(৮ ণ্যযয7 নহামল্যাযা তলোটাতেহাযাযাতাঘি হাতিটি स्व-स्प चिन्तन बीतराग भगवत को पकडकर ही हम वीतराग चन सकंगे । चितेरा (चित्रकार) चित्र तैयार करताह । कंसे करता ह ? লিল को लेकर, सामने रखकर वरावर निरीक्षण करके ही वह उसे बनाता हैं । हम भी वीतराग में रही हुई शक्तियों का, वीतराग कैसे वने इस मागं का, वीत- राणत्व के विकास का, वीतराग अवस्था क स्वरूप के चिन्तन का, वीतराग मुद्रा का तथा वीतराग की वाणी का आलम्बन लेकर वीतराग वेगे । जिन भावो का चितन वीतराग ने “वीतराग” वनने को लिये किया, उन्हीं भावों का चिन्तन, मनन दम भी करेंगे । ऊँसी रहो भावना जाफी निमित्त सव कं लिए समान कासे करता हैं, किन्तु फल की प्राप्ति अपने-अपने भावों के अनुमार होती है। भगवान्‌ अथवा सद॒गुर सव के लिए समान निमित्त ह, हजार व्यक्ति वन्‍्दन-नमत बरने को आते है, उनमें फल की उपलब्धि सव को अपने- अपने भाव के अनुसार ही मिलतो है, क्योंकि भाव सवके स्वाधीन है 1 बयनामुत




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