आचार्य अजीतसेनकृत अलंकार चिंतामणि का आलोचनात्मक अध्ययन | Acharya Ajitsen Krit Alankar Chntamani Ka Alochanatmak Adhyayan

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Acharya Ajitsen Krit Alankar Chntamani Ka Alochanatmak Adhyayan  by अर्चना पाण्डेय - Archana Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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^नं0 40, सन्‌ 1077 मानस्तम्भ पर - चटुटलदेवी ने कमलभद्र पण्डितदेव के चरण धोकर भूमि दी । पंचकूट जिन मन्दिर के लिए विक्रमसान्तरदेव ने अजितसेन पण्डितदेव के चरण धोकर भूमि दी । । नं? 3, सन्‌ 1090 के लगभग पोप्पग्राम - इस स्मारक को अपने गुरू मुनि वादीभसिंह अजितसेन की स्मृति में महाराज मारसान्तरवंशी ने स्थापित किया । यह जैन आगमरूप समुद्र की वृद्धि मे चन्द्रमासमान था ।“2 नं0 192, सन्‌ ।103 - चालुक्य त्रिभुवनमल्ल के राज्य में उग्रवंशी अजबलिसान्तर ने पीम्बुच्च मे पंचवस्ति बनवायी । उसी के सामने अनन्दुर मे चट्टल देवी ओर त्रिभुवनमल्ल - सान्तरदेव ने एक पाषाण की वस्ति द्रविलसंघ अरूगलान्वय के अजितसेन पण्डितदेव ~ वादिषरट्टके नाम से बनवायी । ° ল0 83, सन्‌ 1117 - चामराज नगर में पाश््वनाय वस्ति म एक पाषाण पर जब द्वारावती [हलेबीड्‌] मे वीरगंग विष्णुवर्धन विटिटग होय॒सलदेव राज्य करते थे तब उनके युद्ध और शान्ति के महामंत्री चाव और अरसिकब्वेपत्र॒ पुनीश राजदण्डाधीश था । यह श्री अजितमुनियति का शिष्य जेन श्रावक था तथा यह इतना वीर था कि इसने टोड को भयवान किया, कौंगों को भगाया, पल्लवो का वध किया, হাফ পো রস বে তি হেত তর ভগ ইরা আত হটে কো পাতা তা নত ইহ উজ কে আত উজ ক এপস ই यध जयि धवम তা সাম ই তা টি এ তি সি তরী কে ययः यय शव य दनः भियसा । . मद्रास च भसूर प्रान्त के प्राचीन जैन स्मारक - पृ0-320 - उद्धृत अलंकारचिन्ता्मणि - प्रस्तावना पृ0 - 29 2. वही - प0 सं0 29। - उद्धृत अ0चि0 प्रस्तावना पृ0 29 । 3. वही - पृ0 सं0 325 - उद्धृत अ0चि0 प्रस्तावना प0 29 ।




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