भावप्रकाश एक समालोचनात्मक अध्ययन | Bhavprakash Ek Samalochnatmak Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ ) काल भावप्रकाशन के लेखक शारदातनय के जोवन-काल को निश्चित करने के लिये विद्वानों ने पर्याप्त छानबीन की है। वस्तुत: लेखक ने अपनी कृति मे कही भी सम-सामथिक घटना-क्रम अथवा क्रिसी विशेष घटना का ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया है जो उनके जीवन-काल को निर्धारित करने में सहायक हो सके। ऐसी स्थिति में शारदातनय द्वारा भावप्रकाशन' में दिये गये विविध उद्धरणों एवं पूर्वाचार्यों तथा उनकी क्ृतियों के आधार पर जहाँ इन्हें उन सभी का परवर्ती मानकर चलना पड़ता है वहीं अन्य आचार्यों द्वारा अपनी क्रृतियों में उद्धुत किये गये शारदातनय के उद्धरणों के अनुरूप इन्हें उद्धर्तता लेखकों का पूव॑वर्ती मानकर शारदातनय के समय को दोनों सीमाओं के बीच स्थिर करना पड़ता है। इन्होंने भोजके शशृद्धारप्रकाश तथा मम्मट के काव्यप्रकाश' से अनेक उद्धरण इस आलोच्य ग्रन्थ में प्रस्तुत किये हैं । भोज का समय ११वीं शताब्दी का पूर्वादधं तथा मम्मटका समय ११वीं शताब्दी का उत्तराद्धं स्वीकार क्रिया गया है । अतः शारदातनय को ११वीं दुताब्दी के बाद का ही माना जा सकता है। भावप्रकाशन' में सोमेश्वर नामक आचार्य का उल्लेख भी किया गया है। यद्यपि इस नाम के चार आचार्यों का पता चलता है जिनमें दो का सम्बन्ध संगीतशास्त्र से रहा है, इनका समय १२वीं शताब्दी के उपरान्त हो स्थिर किया गया है । शारदातनय इन्हीं सोमेश्वर नामक संगीत के आचार्यों से सम्बन्धित माने जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में शारदातनय के काल को १२५० ई० के बाद नहीं माना जा सकता । इस प्रकार इनका समय ११७५ ई० से लेकर १२५० ई० के बीच ही स्वीकार करना युक्ति-संगत प्रतीत होता है । कुछ विद्वानों का यह्‌ कथन भी विचारणीय है कि मम्मट के काव्प्प्रकाश पर एक टीका लिखने वाले भट्टगोपाल ही शारदातनय के पिता थे । वस्तुत्तः भद्रगोपाल ने मम्मट के किसी भी परवर्ती आचायं को उद्धृत नहीं कियाहै। साथ ही कुमारः स्वामी जेसे अन्य लेखकों ने १५वीं शताब्दी के प्रारम्भ में भट्टगोपाल को उद्धृत किया है। इससे स्पष्ट है कि भटुगोपाल का समय मम्मट के पक्वात्‌ ही रहा होगा । दस दृष्टि से विचार करने पर शारदातनय का समय १२५० ई० ही निर्धारित मानना समीचीन प्रतीत होता है । ग्रन्थकार को कृतियाँ भावप्रकाशन' ग्रन्थ में शारदातनय ने इस ग्रन्थ के अतिरिक्त संगीत-शास्तश्र से सम्बन्ध रखने वाले एक 'शारदीय' नामक ग्रन्थ का प्रस्तुत ग्रन्थ के सप्तम সপ্ন (পাস তাকে १. इतः परं विद्येषास्तु भोजसोमेदवरादिभिः । भा० प्र०-स० अधि० पृण १९४, पं० ६ ।




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