प्रेम में भगवान | Prem Mein Bhagavaan

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जैनेन्द्र कुमार - Jainendra Kumar

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टॉलस्टॉय -tolstoy

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० प्रम में भगवान कर काम में जुट गया। काम करते-करते रात की बात सोचने लगा। कभी तो उसे मालूम होता कि वह सब सपना था। कभी जान पड़ता कि सचमुच की ही श्रावाज उसने सुनी थी। सोचा कि ऐसी बाते पहले भी तो घटती रही हैं॥ खिडकी के तले बैठा, रह-रहकर वह सड़क पर देखने लगता था । काम से ज्यादा उसे किसीके आने का ध्यान था। अनपहवचाने जूते गली पर चलते देखता तो भांक उठता कि उनका पहननेवाला जाने कौन है । इस तरह एक भल्ली वाला नये चमचमाते जूतों में उधर को निकला । फिर एक कटार गया । इतने में एक बूढ़ा सिपाही, जिसने पुराने राजा का राज देखा था, उस गली में आया । हाथ में उसके फावड़ा था। जूतों से माटिन उसे पहचान गया। पुरानी चाल के নিব से जूते थे। पहनने- वाले का नाम स्टेपान था । एक पडोसी लालाजी के घर में वह रहता था और उनका कुछ काम-धाम निबाह दिया करता था--यही भाड़ -सफाई वर्ग रह कर देना । दया-भाव से लाला ने उसे रक्‍्खा हुआ था । वही स्टेपान गली में आकर शहर से वरफ हटाने लग गया था। रात बरफ खूब पड़ी थी और जमा हो गई थी । मार्टिन ने उसे एक निगाह देखा । कुछ देर देखते रहकर फिर नीचे सिर डाल अपने काम में लग गया। मन-ही-मन वह हँस पड़ा । बोला--“'मैं भी उमर से बुढ़ा गया हूं, नहीं तो क्या ! देखो कि मैं भी कसा बहकने लगा हूं ! आया तो स्टेपान है गली साफ करने, और मुझे सूका कि मसीह प्रभु ही आ गये ই! ই ने बात कि मैं सठिया गया हू ' लेकिन कुछ टांके भरे होगे कि खिडकी की राह वह फिर बाहर देख उठा । देखा कि फावड़ा जरा टेककर दोवार का सहारा ले स्टेपान या तो सुस्ता रहा है, या फिर गरम होने के लिए सांस ले रहा है । स्टेपान की उमर काफी थी। कमर भ्रुक चली थी और देह में कस बहुत नही रहा था । बरफ हटाने के लायक भी दम नहीं था। वह हॉफ-सा रहा था । माटिन ने सोचा--“बुलाकर मैं उसे चाय को বুলু নী কলা! चाय बनी हुई है ही ।” सो,आरी को वही जूते में उठसा छोड़, खड़े होकर भटपट चाय की सब




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