अध्यापिका | Adhyaapikaa

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Adhyaapikaa by रामप्रताप गोंडल -Rampratap Gondal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ अध्या पिका उद्विग्न ही रहा । इससे पूरे जिन परीक्षकों से भी उसका वास्ता पढ़ा था, वे सब बड़े कट्टर थे ओर बड़ी सतकंता से अपना काम करते य; परन्तु इसे न कोई प्राथना के मन्त्र ही याद थे; न वह प्रश्न ही पूछना जानता था। वह बड़े विनम्र स्वभाव का आर दयालु था । वह केवल अधिक से अधिक नम्बर देना जानता था | “४ बाकविस्ट से मिलने जा रहा हूँ?, मेरिया को सम्बोधन करते हुए. उसने कहा, “परन्तु मैंने सुना है वह घर पर नहीं है ।” वे सड़क से उतर कर गाँव के रास्ते पर आगये | हेनोव आगे चल रहा था ओर सेमोन उसके पाछे | कोचड़ के कारण चारों घोड़ों का उस बड़ी गाड़ी को खींचने मं बड़ा जोर लगाना पड़ रहा था | वे धीरे धीरे चल रहे थे । सेमोन कभ। अपनी गाड़ी दाय की चलाता था कभी वाये को; कभी बरफ़ में से उसे गाड़ी निकालनी पडती थी और कभी पोखरों में से | अक्सर उसे गाड़ी से कूद कर घोड़े की मदद करनी पड़ती थी। मेरिया अब भी आने वाली परीक्षा के बारे में ही मन थी ओर सोच रही थी कि गणित का पच। इस बार सख्त आयगा या सरल | उसे रह रह कर भु भलाहट भी होती थी कि उस रोज बोड की मीरिग में कोई भी हाजिर नहीं था | कितना अन्धेर है | वह पिछले दो साल से चोकीदार के निकालने के लिये कहती आ रही है, पर कोई सुनवाई ही नहीं होती | न वह कोई काम ही करता है, मुझसे भी बुरी तरह पेश आता हैं, ओर स्कूल के बच्चों तक को मार बेठता है | अव्वल तो प्रेसीडेन्ट दफ्तर में बेठा मिलता ही नहीं, अगर मिल भी जाता है तो रोनी सी शकल बना कर कह देता है कि उसे मरने की भी फुरसत नहीं है। इन्सपेक्टर भी तीन साल में एक बार आता है । वह महकमा कप्टम से सिफारिश के कारण इधर ले लिया गया है ओर अपने नये काम के बारे में कुछ जानकारी भी नहीं रखता | स्कूल-कोंसिल की बठक




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