मुक्तिधाम में प्रवेश भाग - 1 | Muktidham Me Pravesh Bhag - 1

Muktidham Me Pravesh Bhag - 1 by जेम्ज एलन - Jemj Elan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रतिद्वंदिता के नियम शोर प्रेंम का नियम १ पक्षपात, व्यक्तिगत लड़ाइयोँ अथवा व्यापार संबंधी प्रतिद्ेंदिता इत्यादि सभी प्रकार के लोकिक संग्राम की उत्पत्ति पक ही कारण से होती है और वह कारण व्यक्तिगत स्वार्धपरता है, यहाँ पर में स्वार्धपरता का व्यापक श्र्थ लेता हूँ; में उसमें सब प्रकार के थ्ात्मप्रेम और स्वसिमान को गर्सित करता हैं, में इस शब्द में उस इच्छा को भी शामिल करता हूँ जिस के कारण मनुष्य झात्मसुख योर झात्मरक्षा की और सुकता है । यही स्वाथेपरता स्पर्धा श्यौर स्पर्धा के नियमों का मुख कारण है, यदि स्वार्धपरता न हो तो संसार से स्पर्धा का झस्तित्व ही उठ जाय । जिस मनुष्य के हृदय मे स्वार्थ घुसा हुआ है उसके जीवन में स्पर्धा के नियम काम करने लगते हैं और फिर वह मनुष्य उन्हीं नियमों का पान करने लगता है । संसार के संग्राम को चंद करने के लिए व्यवसाय इत्यादि के विपय में सैकड़ो नये संगठन किये गये, परन्तु वे सब निप्फल गये छोर ऐसा होना झ्निवार्य था, कारण कि ये संगठन इस अम के झ्याधार पर किये यये थे कि वाद्य राज्य सचाएँ उस सग्नाम का कारण है, परन्तु ध्यसली वात यह है कि ये वाद्य सत्ताएँ आंतरिक संग्राम की छाया मात्र है वे नदियो के समान हैं जिनमें धांतरिक संग्राम की घाराएँ बहती है । नदियों का करना चूथा है क्योकि फिर ध्यांतरिक संग्राम की धाराएँ लिप शोर मार्ग निकाल लेंगी घ्र्थात्‌ नई नई नदियाँ बना. इस प्रकार संग्राम वेद नहीं दो सकता; घोर जब तक स्वार्थ घुसा रहेगा तव तक प्रतिदवंदिता के नियम -्हैचे




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