कला की परख | Kala Ki Parakh

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Kala Ki Parakh by के० के० जसवानी -K. K. Jaswani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कला-शिक्षण के उद्देश्य ও. हो जाता है । चित्र जिस प्रकार वालकन्वालिकाओं की मानसिक वृत्तियों - का केन्द्र वन जाता है, उनके मस्तिष्क एवं कोमलः मन पर जसी श्रमिट. छाप छोड़ जाता है उस प्रकार किसी अन्य साधन द्वारा सम्भव नहीं । सामाजिक तथा पारलोकिक उदेश्य कला हमें सौन्दर्य के वास्तविक स्वरूप की ओर खींचकर ठे जाती है । मनुष्य अपने निवास-स्थल, वस्त्र, खाने-पीने के पात्न इत्यादि में জীন. को खोजने लगता है और जीवन के अन्त तक इसकी सच्ची लगन उसके हृदय से जाती नहीं । श्रन्त में उसका जीवन, उसके जीवन के उदेश्य, उसका निश्चित लक्ष्य एक श्रपू्वे सौन्दर्य से निखर उठते हैं श्रौर वह कला | दारा जीवन के सत्य को पहचान जाता है 1 वह्‌ प्रकृति के सौन्दर्य में कला के महत्त्व को देखने लगता है और मुग्ध हो जाता है । पर इससे यह न समना चाहिए कि वह इस वातावरण में फेस जाता है। नहीं, वह इससे ऊपर उठ जाता हूँ । वह इस संसार को एक कलाकार की दृष्टि से देखता है श्रौर उस सच्चे कलाकार--परमात्मा--के निकट खिंच जाता है। कला ही मनुष्य की श्रात्मा को इन्द्रियों हारा ऊपर उठानेकी कोशिश करती ह । हम अ्रपनी आँखों से देखते तो हें। पर हम में उस दृश्य को समभने की भी शक्ति होनी चाहिए ताकि हम केवल सौन्दर्य की शोर स्विच सके और दुर्देशंनीय वस्तुओं से मुंह मोड़ सकें । शारीरिक चक्षु स्वयं ही सुन्दर वस्तुओं की ओर शाक्ृष्ट होते हें ॥ पर इनको आवश्यकता होती है ज्ञान-चक्षुओं की जो उनको मार्गे दिखा सके । श्रौर यह कार्य फरने में कुशल है केवल कला । समाज के विचारों तथा जनता के उच्च झ्रादर्शों को ऊपर उठाने में भी कला ही काम आती है । समाज का उत्थान और पतन बहुत कुछ फला की उन्नति तथा श्रघोगति पर ही निर्भर होता है । जब जनता के विचार शुद्ध होंगे तो समाज का विकास होगा तथा समाज का चरित्र ऊपर उठ सकेगा। उसका प्रत्येक अंग जब अपने जीवन की पुरणंता




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