आत्म-रचना अथवा आश्रमी शिक्षा भाग १ | Aatam Rachna Athva Aashrami Shiksha Part-i
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
जुगतराम दवे - Jugatram Dave
No Information available about जुगतराम दवे - Jugatram Dave
रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry
No Information available about रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)সম্গন্ছল ?
पहले विनकी घबराहुट
आप सब अुत्साहपूर्अक आज जिस आशथममें रहने आये है! हम पुराने भाधमवासी
जाप पये साध्रमषासिर्मोका प्रेमपूर्वक स्वागत करते है। माभमवाससरे ह्मे मिस्य नया
জাল नित्म मी प्रेरणा मिस्खी रखी है। आश्रमर्मे आकर हूममें नया ही जीवन
भा गया है। आप नये आतेवाकोंको भी थैसा ही अनुमव हांगा भिसर्मे शका नहीं।
मये-नये आमेवाक्रके मनर्से आज पहुछे टिन कैसी शुपझू-पुथर मक्त रही हांगी
भिसकी हम कत्पमा केर सक्ते ह) हम पुद जिस विन नपेभामे पे सुम दिन हम मी
मिस अनुमवमें स गुजरे ये। आपने आप्रमके बारेमं परह् परहको बातें सुनी हांगी
और अपने मनमें आश्रमकी कुछ न कुछ मूति बना सी होगी। आपके मनर्मे मूसके
জি ঝুৰ সিল & দু यो स्पप्ट दिसाभी देता है। बर्योकि प्रम न द्वोवा प्तो आप खुशी
लुएी महां दौड़े न जाते। आपमें से कोओ माहठा-पिताको नाराज करके आगे होंगे
कोओ अपग्रेजी शिक्षाका मोह छोड़कर सायं हमि कोमी नीकरी-धपेके निमत्रणकों
ठुगराकर आये होंगे और कोमी धो विनाहका मुहूर्त ठालगर भी यहां आये হান)
आश्रमक छिझे आपय॑ मनर्मे प्रेम म हो घा आअुपक प्रति असा जाकर्षण कंस दो
सकता है?
परन्तु साथ ह्वी जाय पहु दिन आपके मनर्मे मीतर हौ भीतर ओक प्रकारकौ
धवराहुट मी होगी। याश्रमवा अर्थं टदै मस्यन्त पवित्र स्थान। हमारे दे”र्में छाट दच्चोने
मी मृपि-मुनियकि श्राधमोंकी बहानिमों सुमी होती है। श्रीजृष्ण और सुदामा নাশীঘমি
मुनिग आश्रम रहकर पिला छेसे थे। वहां अन्हें गायें बराने और एकड्डियां वाननके
छिम्रे बनमें जाना पड़ता था। रामघंद्र और रथ्मण विश्वामित्र अूपिगे आश्मममें रहे थे।
শিহমালিঙ শুল্ক ঘন জাম एब पहसे दशरथ राजाका जी दुखा था। म॑रे सुकुमार
कुमार बनमें बस रह सकेंगे? आशध्रम-जीवनके कष्ट बसे सहस बर सर्कंगे? भिस
प्रकार शुनके जैसे ज्ञानी राजाको भी क्षणमर मोह हो गया भा। आपने दिल्लीप
राजाकी क्या मी सुनी होमी। थे बसिप्ठ मुनि आश्रममें रहने गये भ। দূলিন
জুল वड़ें आदरस ाप्रमर्मे स्वान दिया। परन्तु व मारतवर्पषक बड़ महागजा पे
शिख कारणस मून्ह আম निममपे मूर्त नही रला । साभमको मूमिमे भ नहीं
षता 1 राजां सौर मिर्षन ध्राष्यण दोनामे र्भ साश्रमममें सो शेष ही नियम जेकसा
ही जीबस। साश्ममर्में कामघनुछी पत्री नन्दिनी नामी माम धी। मूस भरन आनका
काम दिछ्लीप शाजार्क हिस्सेमें आया। राजाने अपना सौमास्य समझा फ मह् काम
मुन्हें सौंपा गया।
হু
User Reviews
No Reviews | Add Yours...