जिनवाणी | Jain Vani
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
416
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat
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शांता भानावत - Shanta Bhanawat
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महान् उपकारी স্সান্থা देव !
[] श्राचाये भ्री हीराचनद्रजी म. सा.
सिद्धि को लक्ष्य बताकर साधना मार्ग में चरण बढ़ाने वाले श्रादश साधक
आचार्य भगवन्त के साधनामय जीवन को लेकर विद्वानजन अपता-अपना चिन्तन
प्रस्तुत कर रहे हैं। अहिसा, सत्य, शील, ध्यान, मौन, संयम-साधना आदि गृणों
को अनेकानेक रूप में रखा जा रहा है | विद्वत् संगोष्ठी के माध्यम-से आपके
समक्ष कई विद्वानों ते चिस्तन-मनन, अध्ययन्-अनुसंधान कर अपने-अपने शोध-
पत्र प्रस्तुत किये हैं ।
ग्राचायं भगवन्त की वाणी में श्रोज, हृदय में पवित्रता तथा साधना में
उत्कर्ष था । उनका बाह्म-व्यक्तित्व जितना नयनाभिराम था उससे भी कई गुना
भ्रधिक उनका जीवन मनोभिराम था । गुरुदेव की भव्य आकृति में देह भले ही
छोरी रही हो पर उनका दीप्तिमान. निर्मल श्याम वर्ण, प्रशस्त भाल, उन्नत
सिर, तेजपूर्ण शान्त मुख-मुद्रा, प्रेम-पीयूष बरसाते दिव्य नेत्र, 'दया पालो' का
इशारा . करते कर-कमल । इस प्रभावी व्यक्तित्व से हर आगत मुग्ध हुए बिना
नहीं रहता था । |
उनके जीवन में सागर सी गम्भीरता, चन्द्र सी शीतलता, सूयं सी तेज-
स्विता जौर पर्वत सी अडोलता का सामंजस्य था । उनकी वाणी की मधुरता,
विचा रों' की महानता और व्यवहार की सरलता छिपाये नहीं छिपती थी ।
उनकी विशिष्ट संयम-साधना अद्वितीय थी ।
विह्दूजनों ने आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा के सल्दर्भ में अपना
चिन्तन प्रस्तुत किया । वस्तुत: आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा अनूठी थी ।
कविता की गंगा, कथा की यमुना और शास्त्र के सूत्रों की सरस्वती का उनके
साहित्य में अद्भुत संगम था । आचार्य भगवन् की क्ृतियों में वाल्मीकि का
सौन्दये, कालिदास की प्रेषणीयता, भवभूति की करुणा, तुलसीदास का प्रवाह,
सूरदास की मधुरता, दिनकर . की वीरता, गुप्तजी की सरलता का संगम धा |
शास्त्रों कौ टीका, जेन धमं का मौलिकं इतिहास, प्रवचन-संग्रह तथा शिक्षाप्रद
कथा्नो से लेकर प्रात्म-नायृति हेतु भजन-स्तवन के अनेकानेक प्रसंग आपने सुने
जोघपुर मे आयोजित विदत संगोष्ठी मे १७-१०-६१ को दिये गये प्रवचन:से
श्री नौरतन मेहता द्वारा संकलित-सम्पादित अंश ।
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