जिनवाणी | Jain Vani

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नरेन्द्र भानावत - Narendra Bhanawat

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शांता भानावत - Shanta Bhanawat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महान्‌ उपकारी স্সান্থা देव ! [] श्राचाये भ्री हीराचनद्रजी म. सा. सिद्धि को लक्ष्य बताकर साधना मार्ग में चरण बढ़ाने वाले श्रादश साधक आचार्य भगवन्त के साधनामय जीवन को लेकर विद्वानजन अपता-अपना चिन्तन प्रस्तुत कर रहे हैं। अहिसा, सत्य, शील, ध्यान, मौन, संयम-साधना आदि गृणों को अनेकानेक रूप में रखा जा रहा है | विद्वत्‌ संगोष्ठी के माध्यम-से आपके समक्ष कई विद्वानों ते चिस्तन-मनन, अध्ययन्‌-अनुसंधान कर अपने-अपने शोध- पत्र प्रस्तुत किये हैं । ग्राचायं भगवन्त की वाणी में श्रोज, हृदय में पवित्रता तथा साधना में उत्कर्ष था । उनका बाह्म-व्यक्तित्व जितना नयनाभिराम था उससे भी कई गुना भ्रधिक उनका जीवन मनोभिराम था । गुरुदेव की भव्य आकृति में देह भले ही छोरी रही हो पर उनका दीप्तिमान. निर्मल श्याम वर्ण, प्रशस्त भाल, उन्नत सिर, तेजपूर्ण शान्त मुख-मुद्रा, प्रेम-पीयूष बरसाते दिव्य नेत्र, 'दया पालो' का इशारा . करते कर-कमल । इस प्रभावी व्यक्तित्व से हर आगत मुग्ध हुए बिना नहीं रहता था । | उनके जीवन में सागर सी गम्भीरता, चन्द्र सी शीतलता, सूयं सी तेज- स्विता जौर पर्वत सी अडोलता का सामंजस्य था । उनकी वाणी की मधुरता, विचा रों' की महानता और व्यवहार की सरलता छिपाये नहीं छिपती थी । उनकी विशिष्ट संयम-साधना अद्वितीय थी । विह्दूजनों ने आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा के सल्दर्भ में अपना चिन्तन प्रस्तुत किया । वस्तुत: आचार्य भगवन्त की साहित्य-सेवा अनूठी थी । कविता की गंगा, कथा की यमुना और शास्त्र के सूत्रों की सरस्वती का उनके साहित्य में अद्भुत संगम था । आचार्य भगवन्‌ की क्ृतियों में वाल्मीकि का सौन्दये, कालिदास की प्रेषणीयता, भवभूति की करुणा, तुलसीदास का प्रवाह, सूरदास की मधुरता, दिनकर . की वीरता, गुप्तजी की सरलता का संगम धा | शास्त्रों कौ टीका, जेन धमं का मौलिकं इतिहास, प्रवचन-संग्रह तथा शिक्षाप्रद कथा्नो से लेकर प्रात्म-नायृति हेतु भजन-स्तवन के अनेकानेक प्रसंग आपने सुने जोघपुर मे आयोजित विदत संगोष्ठी मे १७-१०-६१ को दिये गये प्रवचन:से श्री नौरतन मेहता द्वारा संकलित-सम्पादित अंश ।




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