शल्य विज्ञानं की पाठ्य पुस्तक भाग २ | Shalya-vigyan Ki Pathya Pustak Bhag-2

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संगम लाल - Sangam Lal

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सी० पी० वी ० मेनन - C. P. V. Menon

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 वट्‌, परावद, पीयूष एवं तअ्रधित्रुकक ग्रान्थ्यां (57010, 1১27267570105 एप 200 ^ कालाम्‌ (7121685) वी० एन ० वालकरुप्ण रावं अवटु-ग्रन्थि (प्राणति शश्च) अवटु या थाइराइड एक महत्त्वपूर्ण अन्त स्रावी ग्रन्थि है जो एक विभिष्ट हारमोन का निर्माण, सचय एवं सवण करती है । अन्त.स्नावी होते हुए भी अवटुग्रन्धि की विशेषता है कि इसके द्वारा उत्पन्न हारमोन जठरान्त्र तथा आन्त्रेततर, दोनो मार्गा द्वारा प्रयुक्त किया जा सकता हैं। सम्भवतः इसका कारण है कि मूल रूप में अवटु आहारपथ (211700018 0200) का ही एक जग है (লহীল-120106) । দহিন্ল (৫6510707770) अवटुप्रन्थि का निर्माण उस वृन्त (अवदु-जिद्धापथ, ঠ7508105 2] 170) के अन्तवेलन के फलस्वरूप होता है जो भाद्य সবলী (17177010156 एश) से ग्रीवा सम्मुख के निम्न भाग तक विस्तृत होता हैं। इसका उत्पत्ति-विन्दु जिह्वा कौ मध्यरेखा मे अग्र दो-तिहाई तया पञ्च एक-तिहाई भाग के सगम पर स्थित अच्धरन्त्र (0णिक्षाशा ०४९८०) है । अचदटुग्रन्यिका एक अश चतुर्थ एण्टोडर्मी कोप्ठ (60011 ৩০0৫0100981 709০1.) से भी परिवर्धित होता है । अवटु समस्त पृप्ठवजशियों में विद्यमान होता है। इसके कार्य मे ऋतुनिप्ठ परिवर्तन पाए जाते हैं। इसका आकार यौवनारम्भ के तत्काल पूर्व अधिकतम होता है (४० (काएंइणा) ।




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