भारत वर्ष का इतिहास | Bharata Varsha Ka Etihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम भाग । (६) हों तो आप का मन कितना उत्साहित होता ओर अनुकरण की प्रबल इच्छा आप को किस प्रकार व्ञीमूत कर छती हे ( परन्तु किसी अन्य कै विषय मँ रमे वृत्तान्त श्रवण कर आप करा हृदय उतना उद्वछ्ति नहीं हाता ), एवं यदि आप के पुरुषाओं न किसी स्थान विष मे अपनी बुद्धिमत्ता स सुकार्यो के सम्पादन मं बारबार कीर्ति प्राप्त की हो ता उस स्थानके पाथ तथा उप्त भूमि ( देश ) के साथ भी जहां ऐसे पहापुरुषों ने जन्म ग्रहण किया हो आप का सनह हो जाता है। यही कारण है कि आन भी छक्षा मर्प्य अयोध्या, मथुरा प्रमति के नामां म उत्साहित हो रहे हैं। जो बात एक मनृप्य अथवा मनुष्यों के एक छोटे समूह के विषय में सत्य है वह एक मनुष्य महामण्डछ वा जाति के विषय मे भी चरितार्थ हो सकती है, क्योंकि मनुष्य व्यक्तियों के समारोह से ही एक मनुष्य महासमूह वा जाति बनती है। बहुत मे काय्य एतत हँ जिन्हे सारी नाति मिल कर ही कर सकती हे । यद्रि काई सामाजिक कुरीतियां देश में हां तो सारी जाति का मिल कर ही सुधार का यत्न करना पटुता है, क्योंकि यदि नाति का एक भाग कुरीतियों से पीड़ित हो तो शेष भाग भी सुखी नही रह सक्ता । यदि किमी देश मं वाणिञ्य करना बुरा समझा जाय तो इस का परिणाम यह होगा कि उप्त देश के निवासी स्र के सव्र दरिद्री बन जायो अतण्व आवश्यक है कि नाति अपने धार्मिक, सापाजिक्र तथा अन्यान्य प्रकार के नियमा का मरी भांति सोच समझ कर बनावे और इन नियमों के निर्धारण के लिए उन सामाजिक तथा अन्यान्य प्रकार के नियमों पर भी विचार करट जिन का पालन इस के परुषा किया करते थे अर्थात्‌ अपने पुरुषाओं का-इतिहास भलीभांति अध्ययन कर उक्त प्रकार के गम्भीर नियमों के निमाणाथ उद्यत हा ताकि उन्नति का मांग उस के लिय सुगम हो जाय । इतिहास उमप्त विद्या का नाम हे जिस के अवछोकन से हम किसी जाति के प्रुरुषाओं के वृत्तान्त अथात्‌ उन करी उन्नति ओर अवनति, उन की चा आर शिथिलता उनकी भ्रान्ति ओर दक्षता एवं उन के सुखों ओर दुःखों का पूरा २ ज्ञान हो । भारतवर्षीय इतिहास । आय्य जाति की उन्नति ओर अवनति, उस की चेष्टा और शिथिढता उसकी भ्रान्ति ओर दक्षता, अनेक प्तपरय उप्त के नेताओं की मूर्खता तथा स्वार्थपरता के




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