श्रद्धागुण विवरण | Shraddh Guna Vivaran

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Shraddh Guna Vivaran by श्री सोहन विजय जी महाराज - Shri Sohan Vijay Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९९ जाय: इस द्वेतु निरंतर' अपनी योग्पता के यनुप वृत्र निप मादि दो करे है इसीलिये ऐसे रिवलि)' दी গান कदा जाता हैं। 1 8 ইউজ সহ ` श्रावक धर्म केता हे বং পা এ | ५ र पुदेदख माहुपत्ययतिषमनाप्तयादि कमण! -- मोदषुखदायकत्पेन सुपर ल्पर्मनिः योग्यभ्यरएव दकतच्पः ॥ > इ्यर्म-सुदरेवपन वं भासुपलंपने ` घौरेत्यतिधरै कौ प्रति श्रादि क्रमानुनार मोक्ष के सुख को देने वाले होने से “जो घम कल्पदत्त की उपमा के योग्य हैं बह योग्य पुरुष.को ही देना चाहिये क्योंकि कह ই কি... .. --) বীর नें सित्र हेऊ साथय धम्प्रों वि कमेण सेविश्ो विहिणा । त्तम्हा .जुर्गजियाण दायब्यों धम्मरासियाण 1111). : अर्थ-वित्रि पूर्वक सेवन. क्रिया-हुथा श्रावक धर्म भी সা से मोक्ष का हेतु होता है, इसलिए थ्रावक धर्म के विषय में रासिक योग्य पुरुषों को ही ध्रावक्थर्म का.प्रदान करना चाहिये .। ५ विवेखन- श्रवक-घर्म किसी अयोम्य व्यक्ति को नहीं देना आहिये” यह प्र्थकत्तौ का आशय -है क्योकि धम-रत्वः जैसी अमूल्य वस्तु योग्यायोग्य का विचार किये बिना-हरुएक को कैसे दी जा सकती है । এ জি টি উন ভিজ ও




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