जीवन का सुख विज्ञानं | Jeevan Kaa Sukha Vigyaan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ८
पत्नी और भाई भाई मेभी प्रति नहीं होगी । गृहस्थ लडाई का केन्द्र बना
रहेगा | द
मां की शिक्षा पर ही जीवन का सारा सुख दुःख, मोक्ष, धर्म, नरक মাহি
निर्भर है। इसलिए प्रत्येक मां को अपने बच्चों को बचपन ही से उचम शिक्षा
देनी चाहिये | जिससे वह आदश लाल बने और उसका तथा उसके द्वारा समाज
का वलल््याण हो । कहा भी है :--
पुत्रवती युवती जग सोई। रघुपति भक्त जासु सुतहोई।
नतर नाभ भलि वादि वियानी | राम बिमुख सुत ते हित सानी।
संसार में पुत्रवती सी वह है. जिसका पुत्र ईश्वर के प्रति भक्त हो। नहीं
तो बांध ही रहना श्रच्छा है। धमं-बिहीन तथा भगवान से बिमुख पुत्र से
हानि ही हानि होगी | माता सुमित्रा ने अ्रपना प्रेम कुछ नहीं समझा | उन्होंने
प्रसन्नता पूर्वक लक्षमण जी को वन जाने की झााज्ञा इन शब्दों में दे दी :--
লাল तुम्हार मातु बैदेही। पिवा राम सब भांति सनेही |
श्रवध तहां जहाँ राम निवासू | तहईं दिवस जहं भानु प्रकासू ।
गुरु पितु मातु बन्धुसुरसाई । सेश्व सकल प्राण की नांई।
पूज्यनीय प्रिय परम जहति । सब भानिएु रम् के नाते ।
ग्रस जिय जानि संग बन जाह | लेहु तात जग जीवन लाहू |
राग रोष ईर्षा मद मोह । जनि सपनेहु इनके बस होहु ।
जेहि न राम बन लहैं कलेशु | सुत सोइ करेहु यही उपदेश ।
तुम्हारे माता पिता” जानकी जी श्रथवा श्री राम चम्द्र जी तो वहीं
रहेंगे । जहां राम जी रहं वहीं प्रयोध्या है । जहां सूथं का उजला है वहां ही'
दिन है | गुरू, माता, पिता, भाई, देवता श्रौर स्वामी इन सबकी सेवा प्राणों
के समान करनी चाहिए | रामचन्द्र जी परम पूज्य हैं ऐसा मन में जानकर
साथ बन में जाग्रो और जीने का लाभ उठाओ्रो | मई, मोह राग, रोष, डाह
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