जीवन का सुख विज्ञानं | Jeevan Kaa Sukha Vigyaan

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Jeevan Kaa Sukha Vigyaan by वृषभान नंदिनी - Vrishbhaan Nandini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ८ पत्नी और भाई भाई मेभी प्रति नहीं होगी । गृहस्थ लडाई का केन्द्र बना रहेगा | द मां की शिक्षा पर ही जीवन का सारा सुख दुःख, मोक्ष, धर्म, नरक মাহি निर्भर है। इसलिए प्रत्येक मां को अपने बच्चों को बचपन ही से उचम शिक्षा देनी चाहिये | जिससे वह आदश लाल बने और उसका तथा उसके द्वारा समाज का वलल्‍्याण हो । कहा भी है :-- पुत्रवती युवती जग सोई। रघुपति भक्त जासु सुतहोई। नतर नाभ भलि वादि वियानी | राम बिमुख सुत ते हित सानी। संसार में पुत्रवती सी वह है. जिसका पुत्र ईश्वर के प्रति भक्त हो। नहीं तो बांध ही रहना श्रच्छा है। धमं-बिहीन तथा भगवान से बिमुख पुत्र से हानि ही हानि होगी | माता सुमित्रा ने अ्रपना प्रेम कुछ नहीं समझा | उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक लक्षमण जी को वन जाने की झााज्ञा इन शब्दों में दे दी :-- লাল तुम्हार मातु बैदेही। पिवा राम सब भांति सनेही | श्रवध तहां जहाँ राम निवासू | तहईं दिवस जहं भानु प्रकासू । गुरु पितु मातु बन्धुसुरसाई । सेश्व सकल प्राण की नांई। पूज्यनीय प्रिय परम जहति । सब भानिएु रम्‌ के नाते । ग्रस जिय जानि संग बन जाह | लेहु तात जग जीवन लाहू | राग रोष ईर्षा मद मोह । जनि सपनेहु इनके बस होहु । जेहि न राम बन लहैं कलेशु | सुत सोइ करेहु यही उपदेश । तुम्हारे माता पिता” जानकी जी श्रथवा श्री राम चम्द्र जी तो वहीं रहेंगे । जहां राम जी रहं वहीं प्रयोध्या है । जहां सूथं का उजला है वहां ही' दिन है | गुरू, माता, पिता, भाई, देवता श्रौर स्वामी इन सबकी सेवा प्राणों के समान करनी चाहिए | रामचन्द्र जी परम पूज्य हैं ऐसा मन में जानकर साथ बन में जाग्रो और जीने का लाभ उठाओ्रो | मई, मोह राग, रोष, डाह




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