यह पथ बंधू था | Yeh Path Bandu Tha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यह पथ बन्धु था | १६ -- तुमसे तो बात करना भी कठिन है। ठीक है, फिर लड़ो तुम बेटे से लड़ाई। में तो अब एकादशी से ही मन्दिर में अपरस में नहाया कर्ूगी। मुखिया जी से कह देना। -- चौमासा तो हो जाने दो। श्राद्धपक्ष आ रहे हैं, मुझे नवदुर्गा में भागवत जी बाँचने नरसिंहगढ़ के यहाँ जाना होगा। कैसे क्‍या होगा जरा सोचो तो? -- सारी उमर तो यही सब विचारते-करते बीती। मैंने तो मानता मानी थी सो पूरी करनी होगी। अभी तो ठाकुर जी के लिए सोने की झारी भी बनवाने का प्रबन्ध करना है। -- लेकिन सोने को झारी के लिए पैसे आदि.......... -- मेरे पास एक गलमरी अभी भी चार तोले की है। उसी से मेरा प्रण पूरा हो जाएगा। श्रीधर से ज्यादा गलसरी नहीं है। -- हरि इच्छा ! ! और पति ने बँगवई को झुला दिया। कड़ों की आवाज होने लगी। बातों में बहुत रात बीत गयी थी, यह दोनों को ही पता नहीं चला। दूर कोई बहू पिसना पीसते चक्की के संग गा रही थी।




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