ज्योति पुंज | Jyoti Punj

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Jyoti Punj by सुनीता अग्रवाल - Suneeta Agrawal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मनकहर नहर १९१ है. हमारा त्रश काश्मोर मे एक नहर के किनारे रहता था. साथ ही प्रसिद्ध भा था अंत नहर क किनारे रहने करसे होने के कारण हमारा भाम नेहरू प सयः 1 शन्‌ ९८६७ ईं के श्रास-परस शरण्ये खदा को किनं कारणो से काश्मीर त्याग करना पड़ा ओर वह दिल्‍ली आकर, वहीं स्थायी तौश से इस गये । जिस समय भरी मोतील्ाल नेहरू यम में थे, तभी आपके दादा स्वग- पथ के अजुगामी हो गये । उनकी सृत्यु के छु्ट सास उपरान्त मोतीलाता जी ने संसार सागर की प्रथम फिरण देखी । उस समय नेहरू वंश की पारिवारिक स्थिति अत्यन्त कश्ठपद थी, ज्यों-त्यों परिवार का भरण-पोषण हो रहा था । उसी ऋडिनाई के वातावरण में मोत्तीज्ञाल नेहरू का अध्ययन चेत्ना ! किसी अकार हु वैरस्यम्‌ बन प्रयास में हाईकोर्ट ( उच्च न्यायात्तय ) में आ गये [| यहाँ उनकी श्रा्थिक स्थिति ने एकदम मोद क्तिः और कुछ ही ऋर्खें में नेहरू- परियार राजस्व भोग प्राप्त करमे लगा । प्रयाग, त्रिवेशी की संगमस्थली पर, जहाँ गंगा, यमुना छूवं सरस्वती का খুলীল वं श्रमे मिलन हो रहा दै, ९४ नवस्व, शय ई को नेहरू बंश को गमा मे, मर्ता क श्रमल धणं से, जकहरे की कियल बारा का मधुर संगम हुआ । कुछ की दिनों पर्चान जवाहरलाल को पढ़ने बेंठा दिया गया। घर पर गक पंद्िित धंस्कृत पढ़ाने, एक ऑग्क युवती श्रेय जी पढ़ाने ओर शूकं मोली उदु पढ़ाने थाने कम | पहुने-लिखने मे तन्‍हा जवाहर লন কট আমার जग मग्राता प्रिद्ध डुश्ा । अन्यकास में ही आवश्यक शिक्त प्रप्त कशा, नन्दे जवर को ह्‌ भ्त मैन द यथा, उच्च समय उसकी अथु केव बारह बष की थी। नन जवाहर ने शोशवानस्था से किशोरावस्था, किशोरावस्था से আনব प्रवेश क्रिया 1 विवाह की वात चल्ली, तो आपके भावी वसुर्‌ ने आपको देखते के जिए शपने धर दिल्‍लों मे बुलाया) पित मोतीलाल ने हर्षित हो ठर আট षती जने का शदे द दिया, किन्तु अभी होनहार जवाहर विवाह नहीं करना चाहते थे, अतः चढ़ बहुत विगढ़ रहे घे; स्व नीक कौ फर रहय, मके सामने जकर रिइशिदाायें भी, হাল লী हुए कि. बह पिता जी से कहें कि विवाह करने की अमी कौन शीघ्षता है ? किन्तु ৭৮




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