नाना की माँ | Nana Ki Ma
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)लेन्टियर ने पेसा एक दम नहीं ले लिया। उसमे उसे माँट डी सिटी
तक सिफ इसलिए भेजा था कि वह पैसे ले आये जिसते वह जरबेस को
कुछ भोजन या पैसा जरूर देकर जाय, पर जैसे ही उसने एक कागज में
लिपय हुआ थोड़ा सा माँस और रोरी देखी तो उसमे चुपचाप सारे पैसे
जेब में किये | बोल उठी--
दूध वाली के आठ दिन के पैसे पडे है, इसलिए मेरी हिम्मत उसके
यहाँ जाने की पड़ी ही नहीं | लेकिन मैं जल्दी ही आरा रही हूँ, ठम जब तक
थोड़ी रोदी और टिकियाँ ले आओ और ठीक-ठाक करो | हाँ, थोड़ी शराब
भी लेते आना !! ।
उसने कुछ जवाब नहीं दिया | ऐसा लगा कि दोनों में तममौता हो
गया है; पर व्योँही जखेस बक्स की श्रोर लेन्टियर से कुछ कपड़े लेने के
लिए' बढ़ी, वह गरज उठा---
“नहीं, उसे रहने दो !?
क्या, क्यों रहने दूँ ! कितने मैले हैं ! ये कपड़े पहनने लायक तो नहीं
हैं, क्यों न लेँ !? उसमे कुछ ताज्जुब से कहा ।
ऋर ग्व के भह पर चिता की लकीर उमर आई । उसने
गुस्से मे श्राकर सारे कपडे उसके हाथ से दीन लिये श्रौर बक्समे फिर
अर दिये। -
किसी मतलब से कहता কু!
लेकिन कयौ, ठमको इन कमीजौ कौ क्या जरूरत है; कटी जा तो रहे
नहीं, क्यों न ले ले!” इस बार जरवेस का मुँह पीला पड़ गया और एक
आशंका उभर आई | वह कुछ रुका, जरवेस की मासूम निगाह के श्रागे
जरा डगमगाया |
क्यों न रोक , मेरे कान सुमते-सुनते पक गये हैं कि तुम भेरे कपड़े
चोती हो, सीती हो, सुधारती हो; जाओ अपना काम' करो मैं अपना कर
रहा हूँ १
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