नई कहानिया | Nai Kahaniya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बस गया | লন डरूगा 1 ओर जा गौर 1 अब न्याय की बात
का मारकर दबायरगा तो में भी मारूगा ।
गांधी ने का, यह बात जँची नहीं। गारा भी अन्याय करे,
ओर फिर काला भी अन्याय करे। अन्याय से अन्याय खतम
केसे होगा ? गोरे को गोरा रंग मेट नहीं सकता, और न काले
का काला | सच्ची बात तो यह है कि गोरे काले एक दूसरे को
नहीं सट सकते। हां, अन्याय कान्याय से मटियामटकियाजा
सकता है । गोरा मेरे ऊपर चाहे जितनी जबरदस्ती दिखाले, चाहे
कोई मेरे ऊपर जितना जोर ज़ुलछुम करले--मैं डरूगा ही नहीं।
क्यों डरू' ज्यादा से ज्यादा मुझे मार ही डालेगा न? सा मरना
ता एक दिन सबको ही है। जब मरना है तो डरना कया ९ फिर
নন की बात में क्यों दबे ।
वात काले की समझ में आ गयी ।
दुनिया अपने रंगों का खिलवाड़ देग्व रही थी। बह काले का
भी शह देने लगी और गारे को भी। गोस रंग तो मुँह जोर,
লন से दुनिया की चंग पर चढ़ गया । पर काला तो छर ही डर
में कमजोर हो गया। दुनिया की वताई चालपर डग उठाने का
हौसला कां से लायै । लेकिन न्याय अन्याय समझ जानेपर
काला खव गोरे से दुव्रकर मी रहना नीं चाहता था)
गांधी की बात माने बिना रहा भी न जाता था। यों काला
न्याय अन्याय के बढ़े घरम संकट में पड़ गया | संडीले लड़ खाय
तो पछताये।न खाये तो'पछताये । काले ने सोचा कि खारयेंगे भी
और पत्तायेंगे भी--और फिर पछता पछता ऋर खायेगे 1
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