पुनर्जीवन | Punarjeevan

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Punarjeevan by वंशनरायण सिंह - vanshnaraayan singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) धक्का लगेगा, कहकर उसा खिलखिला कर हँस पड़ी ।” निर्मल उसके इस अकाव्य तके को सुनकर दंग रह गया। फिर मुसकुरा कर प्रसंग को बदलते हुए कहा--इस समय मेरे ज्षिण तक॑ करना और कराना उतना अच्छा नहीं जँचता, जितना नोकरी का पाना। मेरा तो स्वयं का अनुभव हे कि थव इस शहर मे नौकरी का मिलना दुलभ ही नही श्रसंमव-सा है। अतः में सोचता हूँ कि कहीं दूसरे शहर को चला जाऊँ, कदाचित्‌ वहाँ छोटी-मोटी एकाघ नोकरी मिल जाय ? तब तक अच्छा होगा कि. तुम लोग यहीं पड़ी रहो ।?? “नहीं नहीं, हम लोग भी साथ-साथ चल्लेंगे।? “पर टिकट के ल्लिएु इतने रुपये कहाँ से येगे ? “बिज्ञा टिकट ही चलेंगे ! यही न कि सरकार पकड़ कर जेल में बन्द कर देगी । भोजन तो समय पर मिलेगा न} “इसे तुम्हीं सोचो कि यह कहाँ तक उचित है १? “उचित था अनुचित का क्या प्रश्न ३? “क्या आप की सर्विस का छूट जाना उचित है ? यदि वह उचित है तो हम लोगों को साथ चलना भी उतना ही उचित है । नप्र ` # मन ५ ९१ “पर - वर कुछ नहीं। साथ चलूँगी ही सुनकर निर्मल गम्भीर हो गया ओर उमा चाय बनाने चली गयौ |




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