फलदीपिका | Phaldipika

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रत्यन्तर;्चन्द्र महादज्ञा में अन्तर और अन्तरों में प्रयन्तर-मगल महादका में नौ अन्तदंशाएँ और उनमें प्रत्यन्तर-राहु महादशा में अन्तद॑शा और प्रत्यन्तर-गुरु महादश। में अन्तदंशा और प्रत्यन्तर-बुध महादशान्तगंत गन्तदशा और प्रत्यन्तर-केतु में अन्तर और प्रत्यन्तर तथा शुक्र महादशा में नवों अन्तदंशा और प्रत्यन्तदशा। पृ० ४५१-४८५ २२. बाईसवाँ अध्याय : मिश्रददा कालचक्र महादशा, भन्तदशा-महादशा काल-भुक्त भोग्य निकालने का प्रकार-प्रत्येश नक्षत्र चरण में जन्म होते से रादियों का दशाक्रम-प्रत्येक राशि का दशा काल-प्रत्येक दशा में काल-राझि स्वामीवद् फल में तारतम्य-गोचरवण प्रभाव-त्रिविघ् गतियाँ-इन सबकी पूर्ण व्याख्या उदाहरण सहित-जन्म नक्षत्र से पाँचवें तथा आठवें नक्षत्र से उत्पन्न, भाघान तथा महादशा-निसरगं दशा-अंझ दशा-सत्याचायं का मत-पिण्डायुदशा-जीवशर्मा मणित्थ, चाणक्य, मय आदि का मत । पुर '४८६-५३५ २३. तेईसवाँ अध्याय : अष्टकवगं । मष्टकव्ग से गोचर विचार का सिद्धान्त-सूर्य-चन्द्र, मंगल, बुघ, बुहस्पति, शुक्र तथा शनि के अष्टक वग बनाने की प्रक्रिया-उपचय, मित्र राशि, स्वोच में या अनुपचय, दात्रुराशि या नीच ग्रह से फलादेश में तारतम्य-एक या अधिक बिन्दुओं का अशुभ या शुभ फल-प्रह को लग्न मान शुभाशुभ निर्देश-प्रत्येक राशि की ८ कक्ष्या-कक्ष्यावश शुभाशुभ काल निणय-सर्वाष्टकवर्ग-उदाहरण सहित । पृ० ५३६-५६१ । २४. चौबीसवाँ अध्याय : अष्टकबग फल पिता, माता, भ्राता आदि तथा स्त्रयं का शुभाशुभ काल निणंय- अष्टकवर्ग से शुभाशुभ वरष॑ निकालने का प्रकार-किस राशि या दिशा ,




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