Book Image : स्वाधीनता के सिद्धांत  - Swadheenta Ke Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ )) का दिन सारे देश में एक साथ गदर करने का नियत किया गया। मैक्सखिनी बगावत के पूरे पक्षपाती थे। जब दिन निकट आने लगा, उनकी नी और भूख हराम हो गई। वह दिनिभर दौड़-घूम मचाते थे और रात को सोचते थे, किस प्रकार सफलता प्राप्त होगी। उनके भाग्य से वह टिच आ गया था जिसके स्वप्त वह बचपन में देखा करते थे । सब तैयारियाँ हो चुकी थी, खयंसेवक आशा लगाये हुए थे, अब शीघ्र द्वी देश उठ खड़ा होगा। किन्तु २२ परेल के पत्रों मे स्टाफ के मखिया अध्यापक সক্কলীত की सूचना छुपी “किसी बड़े संकट के कारण वह आज्ञा रद की जाती है जो आयरिश स्वयंसेवकों को कल के लिए दी गई थी ।” इस श्राज्षा से २३ तारीख का बलवा रुक गया। आयरिश प्रजातन्त्र के आ्राट-संघ ने आज्ञा निकाली कि २४ तारीख को बलवा किया जाय । इस गड़बड़ी से कद्टीं चलवा हुआ, कहीं नहीं हुआ । काके के लाडं मेयर वदां के स्वयंसेवको से सन्धि करने श्रये और उनसे हथियार सोप देने को का । शर्तं यह्‌ थौ कि स्वयं सेवको को दण्ड च मिलेगा. किन्तु वचन तोडा गया। तीसरी मई को मैकस्विनी गिर फ्तार किये गये और काक की जेल में बन्द कर दिये गये । हफ्ते भर बाद वह डब्लिन भेजे गये और वहां से वेकफिल्ड-जेल में पहुँचाये गये और अन्त में उत्तरी बेल्स की फ्रन्गाक छादइनी में नजरबन्द किये गये । सारे देश में सनसनी फैल गई और यही बलवादे चाहते थे। वे खूब जानते थे कि वर्तेमान वलहीन स्थिति मं बलवां सफल नहीं हो सकता । किन्तु जब कई बड़े-बड़े देश- भक्तस्ववन्त्रताके युद्ध मे अपने प्राणे की आहुति देते हैं, तो उन मर्दों में भी जान औओ जाती दै जो जातिद्रोदी श्रीर कायर




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