जैनभजन प्रकाश [भाग 4] | Jain Bhajan Prakash [Part 4]

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Jain Bhajan Prakash [Part 4] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) डाल गणि वान्दो॥ बन्दत प्रम ्रानद्‌ लो ॥ भेटत शिव सुख कंद लो ॥ मुख जिम पनसचंद लो॥ चेसोरे उपगः खामी डाल गणि बान्यो ॥ भविजवकी ष्टे पनि- बर डाल गयणि बांदो ॥ एषां ॥ चाद्‌ जिनेद्‌ ज्य भिन्न अधिक उजागर ॥ पंचम धरै मंभार सो ॥ धमं प्रगट लियो बहू सवि- ताखा ॥ जिन सांसण उजियार तो ॥बांदो॥ ॥ १॥ वस्पटठ सप्तम डाल सनिंदा ॥ च्यार तौथ झाधारलो । दश प्रियारो ज्यांरो जे कोड पावे ॥ पुन्य पल तसुार लो ॥ वादो ॥ ।॥ २॥ समो सरण विच जितदर सोहै ॥ भविमन रोड अपार चो ॥। জিম दख सारे प्राप जिनवर जेहवा॥ ज्ञानसौरोसमल सार लो॥ बांदो ॥३॥ सभा शुध्नीं इन्टर दिपादे॥ जिम जिन सांख्य आयल ॥ भिचु गणिंदरो तखत ढिपावो।। यांरो दिल শপ.




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