परीक्षामुखसूत्रप्रवचन भाग - 11, 12, 13, 14 | Parikshamukhasutrapravachan Bhag - 11, 12, 13, 14

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Parikshamukhasutrapravachan Bhag - 11, 12, 13, 14  by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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एकाद भाग [१३ प्राक्‌ अ्रसतुमे कारण समवाय होनेसे कार्य रना मानने पर दोषोका कुछ विवरण--यदि यह मानोगे कि पहिले कुछन था और कारण जुट जाते पर श्रव फार्यक्रा भ्रत्तित्व हो गया तो यहा यह हेतु व्यानिवारी हो जायगा। घडा बना, तो बह पहिल कुछ न हो भौर फिर घटा श्रा जाय तत्र तो कहना ठीक है पर पहिले कुछ भी न था यह तो अपयुक्त है मिट्टी थी उसमें घठकार्यपत्रा न था, जब कारश जुटे तब वटकार्यपना श्राया । ऐसा ही तुम मानो ! जो ऋप्तर रहेगी उसे पीछे बतायेंगे, पर इतना तो तुम्हें भी मानना ही होगा कि ये जमीन पर्वत श्रादिक पहिले ये, पर इम रूप न थे, तो कारण जुटाकर फिर ईश्वरस क्रिस फिपको इस झूपमे तैयार कर दिया यदि ऐसा कहो कि ग्रसतत्‌ तो हमारा एक सूलवाला उत्तर झा ही गया है कि यह पहले सत्‌ था, भ्रसतत्‌ बात ता रही नहीं और यदि यह कहो कि अम्तत्‌ मो गपत्‌ हीह, नैते पहिले प्रयतु था उमौ प्रकार कारणका समवाय होने पर भी सम्बन्ध होने पर भी वह र झासत्त्त नही भ्र ता तो श्रमतु इतता हो कहो प्राक्‌ (पहिले) शब्द क्यो कहते ? एफ वात भ्रौर है जो त्रिल्कुन प्रततु है उत्मे कारणोका समवाय सम्बन्ध भी नहीं जुटता | श्रगर प्रस्तत्‌ पदाथमे कारण जुटे और उसका कार्य बन जाय तो फिर आप थाहये ग्राकाशके फ़नकी माला वताकर ले श्राइये । झात ला सकते हैं क्या ? श्राफ़ाश के फूनोक्ी भाता अ्नत्‌ है आकाशके फूल ही नही होते तो कहांसे श्र काशके फूल ले गावोगे ? श्रच्छा-बक्रिा लडका ल प्रान्नो-हम उसे पढायगे । तो लावो आप, कहासे लाप्रोगे । जो गसत्‌ है, है ही नही, उत्तते कारणकलाप कया जुडाबोगे ? तो भ्रसत्‌ पदार्यएे कारण नही जुदा करते । गधेके सीगका धनुष बनाकर लाइये, क्धा श्राप ला सकेंगे ?ै জাগা ही नहीं जा सकता । अप्तत्‌ है, उसमे कारणकलाप ही नही जुड सकते । यदि यहू कहो कि कि गधे के सीग भ्रादिकमे कारणोका भ्रभाव है इसलिये यह दोप न कहेंगे । तो कहते हैं कि पृथ्वी प्रादिकके भी कारणोका समवाय सम्बन्ध नहीं जुड़ सकेता इसलिये उसमे भी कार्ययता ने भ्रा सकेगा । लोक परिणमन व्यवस्थाका मूल कारण वस्तुस्वरूप - भैया | মাল নী सीधी है कि जगतमे অন पदार्थ हैं श्ौर, हैं ' मे ही ऐसा गुण मरा हुम्ना है कि प्रतिसमय नया बनता रह पुराना बिगढना रहे और उसका मत्व वना रहे, यह बात तो सत्त्वमे ही पडी हुईं हैं। घु कि ये सब सत्‌ हैं इस कारणते ये निरन्तर बनते हैं, विगडते हैं बने रहते हैं। चनना विगड़ना बना रहता है । गद्‌ सद्र प्रस्येक पदाथमे एक साथ होता है। जैसे देखो यह भगुली प्रभी सीधी है झ्ौर इसको प्रत्र टेडी कर दिया तो बतलायो बन करा गया ? ठेढी भ्रगुली चच गई । और, विगढ वयर गया 2 मीधी झगुलीका विनाश हो गषा । झभौर, प्तगुली सामान्य त्व भी था औौर श्रव भी है। तो दयोजी यह दतावों कि पहिले सीघका विनाक्ष हुआ फिर टेढ़ी हुई श्रगुनी पर्ति ठेटो अवूली हुई तव स्लीधी मिदी ? कुछ कह हो नही सकते । श्रौर, इसमे तो पुछ मय उगता है सोधीकों इतरी टेढो करतेमे, एक समयके হাহ লী ঘষা ইত चा দল




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