यशोद्र और राष्ट्र कवी मैथलीशरण गुप्त | Yashodhara Aur Rastra Kavi Maithilisharan Gupt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११ )
नाटकीयता और प्रवन्वात्मकता की भी हम पूर्ण रूप से उपेक्षा नहीं कर सकते,
ग्रतएव हम कह सकते ह कि यश्ेधरा नाटकीय पद्धति पर लिखा हुआ गीति-प्रवन्ध
काव्य है | ছু ॒गीति-प्रवन्ध-काव्य को कु लोग “मिध्रित गीति काव्यः कहना
अधिक उचित समभते हैं और कुछ उसे चम्पू काव्य तक खींच ले जाते है । हमारी
समभ में यशोधरा अपने हँग का अकेला ही काव्य है ग्रतः यदि उसे हम गीति-
प्रवन्ध-काव्य' नाम नी दे देते हैं तो न तो कोई श्रम ही पैदा होता और न अनौ-
चित्य ही । ।
, श्रव प्रश्न यह् है कि इस दृष्टि से यशोघरा' कहाँ तक एक सफल कृति
है | काव्य की सफलता इस बात पर निर्भर होती है कि वह॒ पाठक को पूर्णतया
प्रभावित करले । 'यशोधरा' में प्रभावित, करने की पूर्स शक्ति है। यशोधरा की
विरह-बेदना में पाटक आत्मविभोर हो जाता है, इब जाता है, सिसकियाँ भरने
लगता है] एक ही बात इसमें रूटकती है, वह हैं गद्य का प्रभाव--हीन प्रयोग ।
नवीन शैली प्रस्तुत करने के मोह का संवरण न कर सकने के कारण ही कवि ने
गद्य.भी उसमें सम्मिलित कर दी है । इससे पाठक के मन में -पहले से चला आया
भावावेग शिथिल हौ जाता है । यहु शिथिलता एक प्रकार की सीमा पैदा कर देताः
है 1 -संवादों का प्रयोग कहीं कहीं तो चमत्कार पैदा करता है, परन्तु कीं कहीं -
वह अत्यधिक -हास्यात्मक वन गया हैं, जिसे पढ़ कर कवि के प्रति दया आने
लगती है । फिर भी नवीन प्रयोग की दृष्टि से लेखक का प्रयास सराहनीय है ।
यशोधरा में सर्वाधिक प्रयोग गीतों का हुआ है । इन गीतों को हम नए ढंग के
गीति ही कहेंगे | अनुभूति की तीव्रता, भाव प्रवणता, और आत्माभिव्यंजन जो
गीति' के प्रमुख गुणा हैं यशोधरा' के अनेक गीतों मे. प्राप्त होते हैं। नदी प्रदीप
दान ले , सो अपने चंचलपन सो' तथा र्दन का हँसना ही तो गान श्रादि गीत
इस दृष्टि से श्रद्चितीय हैं। लय और गेयता भी इसमें पूरी तरह समाई हुई है ।
परन्तु कुछ गीतों में कवि ने अ्र्थहीन तुक मिलाने का प्रयास किया है, उसका यह
मोह बहुत पुराना है | नम्र, तक्र, झक्र, चक्र आदि कर्राकठु और प्रचलित शब्द
ऐसा सोचने के लिए बाध्य करते हैं | कुछ गीत कथा सूत्र को समेट कर चलने के.
कारण भी नीरस हो गए हैं । भाव-विशेष की अभिव्यक्ति ही गीतों में सौन्दर्य और
माधुर्यं भर सकती है, साधारण बातचीत में कहने से वह अपने गणको खोकर
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